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पश्चिम बंगाल : अब मुख्य सचिव को लेकर विवाद, ममता का अलपन को दिल्ली भेजने से इनकार

पश्चिम बंगाल : अब मुख्य सचिव को लेकर विवाद, ममता का अलपन को दिल्ली भेजने से इनकार

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कोलकाता, 30 मई। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद से राज्य सरकार और केंद्र के बीच जारी तकरार कम होने का नाम नहीं ले रही है। अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय को कार्यमुक्त करने से इनकार कर दिया है।

मुख्यमंत्री ममता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में कहा है कि पश्चिम बंगाल सरकार ऐसे मुश्किल दौर में अपने मुख्य सचिव को कार्यमुक्त नहीं कर सकती। केंद्र ने 28 मई को राज्य सरकार को पत्र लिखकर अलपन को मुक्त करने का अनुरोध किया था।

गौरतलब है कि पहले चुनाव बाद राज्य में हुईं हिंसक घटनाएं और फिर नारदा स्टिंग मामले में राज्य सरकार के दो मंत्रियों सहित चार नेताओं की गिरफ्तारी को लेकर केंद्र व ममता सरकार के बीच विवाद देखने को मिला। पिछले हफ्ते 28 मई को राज्य में तूफान प्रभवित क्षेत्रों के हवाई सर्वेक्षण के बाद पीएम मोदी की एक समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ममता और मुख्य सचिव अलपन के कथित तौर पर आधा घंटा विलंब से पहुंचने पर भी बखेड़ा खड़ा हुआ। उसी रात केंद्र ने राज्य सरकार को संदेश भेज दिया था कि वह अलपन को तत्काल प्रभाव से मुक्त कर दे। साथ ही अलपन को 31 मई की पूर्वाह्न 10 बजे से पहले दिल्ली में रिपोर्ट करने को कहा गया था।

फिलहाल ममता बनर्जी ने पीएम को लिखे पत्र में केंद्र के इस फैसले को वापस लेने, पुनर्विचार करने और आदेश को रद करने का उनसे अनुरोध किया है। उन्होंने कहा, ‘पश्चिम बंगाल सरकार ऐसी मुश्किल घड़ी में अपने मुख्य सचिव को छोड़ नहीं सकती और न ही उन्हें कार्यमुक्त कर रही है।’

गत 24 मई को बढ़ाया गया था बंदोपाध्याय का कार्यकाल

स्मरण रहे कि अलपन बंदोपाध्याय को आज सोमवार, 31 मई को मुख्य सचिव पद से अवकाश ग्रहण करना था। लेकिन राज्य सरकार के आग्रह पर केंद्र ने गत 24 मई को उन्हें तीन माह का सेवा विस्तार दे दिया था। ऐसा कोविड-19 महामारी से निबटने के मद्देनजर किया गया था। फिलहाल 28 मई की घटना के बाद केंद्र ने अचानक अलपन को दिल्ली तलब कर लिया।

हालांकि कानून के जानकारों ने आशंका जताई थी कि केंद्र के लिए बंगाल के मुख्य सचिव को सेवानिवृत्त होने के दिन दिल्ली बुलाने के आदेश का पालन मुश्किल हो सकता है। जानकारों का कहना था कि राज्य सरकार अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए उन्हें कार्यमुक्त करने से इनकार कर सकती है।

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