
नई दिल्ली, 18 मार्च। यदि सबकुछ अनुकूल रहा तो निकट भविष्य में वोटर आईडी कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने का अभियान तेज किया जाएगा। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) और गृह मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के बीच हुई एक अहम बैठक में यह फैसला लिया गया है।
निर्वाचन आयोग और गृह मंत्रालय की बैठक में फैसला
मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार ने अपने दो सहयोगी चुनाव आयुक्तों – डॉ. सुखबीर सिंह संधू व डॉ. विवेक जोशी के साथ मंगलवार को अपने मुख्यालय निर्वाचन सदन में केंद्रीय गृह सचिव, विधि मंत्रालय के सचिव, इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव और यूआईडीएआई के सीईओ तथा चुनाव आयोग के तकनीकी विशेषज्ञों के साथ महत्वपूर्ण बैठक की।
निर्वाचन आयोग अब ईपीआईसी को आधार नंबर से जोड़ने के लिए अनुच्छेद 326, आरपी अधिनियम, 1950 और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुसार संवैधानिक दायरे में रहते हुए समुचित काररवाई करेगा। इस सिलसिले में यूआईडीएआई और ईसीआई के विशेषज्ञों के बीच तकनीकी परामर्श जल्द ही शुरू हो जाएगा।
इसलिए लिया गया यह निर्णय
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार, मताधिकार केवल भारत के नागरिक को ही दिया जा सकता है जबकि आधार कार्ड केवल व्यक्ति की पहचान स्थापित करता है। इसलिए, यह निर्णय लिया गया कि ईपीआईसी को आधार से जोड़ने का कार्य केवल संविधान के अनुच्छेद 326, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23(4), 23(5) और 23(6) के प्रावधानों के अनुसार तथा डब्ल्यूपी (सिविल) संख्या 177/2023 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुरूप किया जाएगा।
तकनीकी विशेषज्ञों के बीच जल्द शुरू होगी बातचीत
यूआईडीएआई और ईसीआई के तकनीकी विशेषज्ञों के बीच तकनीकी परामर्श भी शीघ्र ही शुरू होगा। देश में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोपों का स्थाई और वैज्ञानिक समाधान निकालने की ठान ली है। यह कदम उन मतदाताओं की पहचान सुनिश्चित करने के लिए उठाया जा रहा है, जो वोटर के रूप में एक से ज्यादा जगहों पर रजिस्टर्ड हैं।
राजनीतिक दलों ने उठाए सवाल
दिलचस्प यह है कि यह बैठक ऐसे समय पर हुई है, जब तृणमूल कांग्रेस, शिव सेना (UBT), एनसीपी (SCP) और बीजद जैसे कई राजनीतिक दलों ने एक ही EPIC नंबर वाले मतदाताओं का मुद्दा उठाया है। आयोग ने स्वीकार किया है कि कुछ राज्यों में खराब अल्फान्यूमेरिक सीरीज के कारण गलती से एक ही नंबर दोबारा जारी किए गए थे, लेकिन इसे फर्जीवाड़ा नहीं कहा जा सकता। अब इस मुद्दे का ठोस समाधान निकालने के लिए आयोग ने सक्रिय कदम उठाए हैं।