उत्तराखंड : वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री इंदिरा हृदयेश का निधन, दिल्ली के उत्तराखंड सदन में ली अंतिम सांस
देहरादून/नई दिल्ली, 13 जून। उत्तराखंड की राजनीति में जबर्दस्त हनक रखने वालीं कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश का रविवार की सुबह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हृदय गति रुकने से निधन हो गया। 80 वर्षीया कांग्रेस नेत्री की सुबह उत्तराखंड सदन में तबीयत बिगड़ी तो उन्हें संभाला नहीं जा सका। उनके शोक संतप्त परिवार में तीन पुत्र हैं।
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह और मायावती ने जताया शोक
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने इंदिरा हृदयेश के निधन पर शोक जताया। उन्होंने ट्वीट किया, ‘मेरी बड़ी बहन जैसी आदरणीया श्रीमती इंदिरा हृदयेश जी के निधन का दुखद समाचार मिला।’
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने अपनी शोक संवेदना में कहा, ‘यूपी और फिर उत्तराखंड की राजनीति में लंबे समय तक अति-सक्रिय व अहम भूमिका निभाने वाली उत्तराखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के आज निधन की खबर अति-दुःखद। उनके परिवार व समर्थकों के प्रति मेरी गहरी संवेदना। कुदरत उन सबको इस दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे।’
कुमाऊं मंडल में मदद का मसीहा मानी जाती थीं इंदिरा
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में सात अप्रैल, 1941 को जन्मीं इंदिरा हृदयेश ने हिन्दी और राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री हासिल की थी। उनके पास बीएड और पीएचडी की भी डिग्री थी। इंदिरा हृदयेश ने अपने राजनीतिक करिअर के दौरान उत्तराखंड की राजनीति को कई नए मुकाम दिए और प्रदेश में विकास के अनगिनत काम किए। खासकर कुमाऊं मंडल में उनको मदद का मसीहा माना जाता रहा है।
1974 में पहली बार यूपी विधान परिषद पहुंची थीं
मजबूत इरादों की महिला मानी जाने वालीं इंदिर हृदयेश को उत्तराखंड की राजनीति की आयरन लेडी भी कहा जाता रहा। उनके राजनीतिक सफर पर नजर डालें तो 1974 में उत्तर प्रदेश के विधान परिषद में पहली बार चुनी गईं, जिसके बाद 1986, 1992 और 1998 में लगातार चार बार अविभाजित उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए चुनी गईं। वर्ष 2000 में अंतरिम उत्तराखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी बनीं और प्रखरता से उत्तराखंड के मुद्दों को सदन में रखा।
एनडी तिवारी के कार्यकाल में जबर्दस्त हनक थी
इंदिरा हृदयेश वर्ष 2002 में उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव के दौरान हल्द्वानी सीट पर जीतीं और नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से विधानसभा पहुंचीं। बाद में उन्हें एनडी तिवारी सरकार में संसदीय कार्य, लोक निर्माण विभाग समेत कई महत्वपूर्ण विभागों को देखने का मौका मिला।
एनडी तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल में इंदिरा का इतना बोलबाला था कि उन्हें सुपर मुख्यमंत्री तक कहा जाता था। उस समय तिवारी सरकार में यह प्रचलित था कि इंदिरा जो कह दें, वह पत्थर की लकीर हुआ करती थी।
वर्ष 2007 में इंदिरा हृदयेश चुनाव नहीं जीत सकीं, लेकिन 2012 में एक बार फिर वह विधानसभा चुनाव जीतीं और विजय बहुगुणा तथा हरीश रावत सरकार में वित्त मंत्री व संसदीय कार्य समेत कई महत्वपूर्ण विभागों का जिम्मा संभाला। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में भी वह हल्द्वानी से जीतीं। कांग्रेस विपक्ष में बैठी तो नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्हें पार्टी के नेतृत्व का मौका मिला।