बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल, कहा – अपराध की गंभीरता पर विचार करना चाहिए था
नई दिल्ली, 18 अप्रैल। सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो गैंगरेप केस के 11 दोषियों की रिहाई मामले में तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मंगलवार को कहा कि अपराध की गंभीरता पर राज्य सरकार को विचार करना चाहिए था। शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘सेब की तुलना संतरे से नहीं की जा सकती, इसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती।’
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। इसके साथ ही कोर्ट ने दोषियों को छूट देने को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अंतिम निस्तारण के लिए दो मई की तारीख निर्धारित की। दूसरी ओर केंद्र सरकार और गुजरात सरकार की ओर से कोर्ट में कहा गया कि दोषियों को छूट पर मूल फाइलें मांगने के आदेश की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च को गुजरात और केंद्र सरकार को निर्देश दिए थे कि बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई जिस आधार पर की गई, इसकी फाइल प्रस्तुत की जाए। हालांकि, ये फाइलें अभी सरकार की ओर से पेश नहीं की गई हैं।
‘सेब की तुलना संतरे से नहीं की जा सकती‘
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘एक गर्भवती महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और कई लोगों को मार डाला गया। आप पीड़िता के मामले की तुलना मानक धारा 302 (भारतीय दंड संहिता में हत्या) के मामलों से नहीं कर सकते। जैसे आप सेब की तुलना संतरे से नहीं कर सकते, उसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती। अपराध आम तौर पर समाज और समुदाय के खिलाफ होते हैं। असमान लोगों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता है।’
‘यदि आप छूट देने के लिए कारण नहीं बताते तो हम खुद से अपने निष्कर्ष निकालेंगे‘
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, ‘सवाल यह है कि क्या सरकार ने अपना दिमाग लगाया और क्या बातें रहीं जो छूट देने के फैसले का आधार बनीं। आज यह बिलकिस है, लेकिन कल यह कोई और भी हो सकता है। यह आप या मैं हो सकते हैं। यदि आप छूट देने के लिए अपने कारण नहीं बताते हैं, तो हम खुद से अपने निष्कर्ष निकालेंगे।’
गौरतलब है कि बानो के साथ 2002 के गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार किया गया था। साथ ही उस दौरान उनके परिवार के सात सदस्यों की भी हत्या कर दी गई थी। बानो ने अपने दोषियों की ‘समय से पहले रिहाई’ के सरकार के फैसले को पिछले साल नवम्बर में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।