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इसलिए श्याम वर्ण की है रामलला की मूर्ति, काशी विद्वत परिषद के रामनारायण द्विवेदी ने बताया रहस्य

इसलिए श्याम वर्ण की है रामलला की मूर्ति, काशी विद्वत परिषद के रामनारायण द्विवेदी ने बताया रहस्य

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वाराणसी, 20 जनवरी। नव्‍य अयोध्‍या में निर्मित भव्‍य राम मंदिर में रामलला की श्‍यामल मूर्ति की प्राण प्रतिष्‍ठा में अब कुछ घंटे शेष हैं। काशी के प्रकांड वैदिक विद्वानों द्वारा अनुष्‍ठान के तय कार्यक्रम के अनुसार 22 जनवरी की मध्‍याह्न मृगशिरा नक्षत्र और संजीवनी मुहूर्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रामलला विग्रह की आंखों की पट्टी (दिव्‍य दृष्टि) खोल काजल लगाने और तिलक करने के बाद आईना दिखाएंगे। इससे पहले मुहूर्त शुद्धि सहित कई कर्मकांड होंगे।

महर्षि वाल्‍मीकि रामायण में प्रभु के श्‍याम वर्ण स्‍वरूप का ही वर्णन मिलता है

इस बीच काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय (BHU) के प्राच्‍य विद्या धर्म विज्ञान संकाय के प्रोफेसर और काशी विद्वत परिषद के मंत्री रामनारायण द्विवेदी ने यह रहस्य बताया है रामलला की मूर्ति आखिर श्याम वर्ण की ही क्यों है? उन्होंने बताया कि महर्षि वाल्‍मीकि रामायण में प्रभु के श्‍याम वर्ण स्‍वरूप का ही वर्णन मिलता है, यानी राम श्याम वर्ण थे। कोई दूसरा ज्ञात स्‍वरूप न होने के कारण वर्तमान में रामलला श्‍यामल वर्ण में ही पूजे जाते हैं।

मूर्ति में श्रीराम अकेले क्यों हैं?

जन्मभूमि में राम के बाल स्वरूप की ही पूजा की जाती है। इस वजह से उनकी मूर्ति अकेले है। मूर्ति का वजन लगभग दो क्विंटल और ऊंचाई 51 इंच है। पाषाण (पत्‍थर की मूर्ति) में प्राण प्रतिष्‍ठा क्‍यों की जाती है? इस सवाल पर रामनारायण द्विवेदी कहते हैं कि शास्‍त्रों के अनुसार वेद मंत्रों से देवत्‍व के आह्वान यानी प्राण प्रतिष्‍ठा के बिना प्रतिमा दर्शनीय हो सकती है, लेकिन पूजनीय नहीं। इसलिए पूजित होने वाली मूर्ति में प्राण प्रतिष्‍ठा आवश्‍यक है।

प्राण प्रतिष्‍ठा कैसे की जाती है?

शास्‍त्रों और वेदों में प्राण प्रतिष्‍ठा के कई कर्मकांड बताए गए हैं। कलियुग में पंच भौतिक तत्‍वों से भी देवत्‍व का आह्वान श्रेष्‍ठ माना गया है। इसमें फलाधिवास, घृताधिवास, अन्‍नाधिवास और शैयाधिवास प्रमुख हैं। इस दौरान देवताओं, कुल गुरु और ऋषियों का आह्वान कर वेद ऋचाओं से आहुति दी जाती है। पूजन में अर्चकों में ठीक उसी प्रकार का भाव होता है, जैसे शिशु के प्रति माता-पिता का।

मूर्ति को काजल क्‍यों लगाया जाता है?

नेत्र की ज्‍योति के लिए आयुर्वेद शास्‍त्र में कज्‍जानुलेपनम (काजल लगाना) को आवश्‍यक बताया गया है। जैसे शिशुओं को नजर से बचाने के लिए काला टीका और काजल लगाया जाता है, वैसे ही प्रभु की मूर्ति को भी काजल लगाने की परम्परा है।

प्राण प्रतिष्‍ठा से पहले मूर्ति की आंखों को ढकने की क्‍या वजह है?

मंत्रों के द्वारा आह्वान से मूर्ति में देवत्‍व का वास हो जाता है। इससे सारा तेज नेत्रों में उतर आता है। महाआरती से पहले नेत्र खुले रहने पर शास्‍त्र विधि का लोप होता है और प्राण प्रतिष्‍ठा पूर्ण नहीं मानी जाती। महाआरती के बाद खास मंत्रोच्‍चार के बीच आंखों की पट्टी खोले जाने तक नेत्रों में समाया देवत्‍व का तेज पूरी मूर्ति में उतर आता है।

आंखें खोलते समय प्रभु को आईना क्‍यों दिखाया जाता है?

प्राण प्रतिष्‍ठा से विग्रह में जन्‍मी ऊर्जा और तरंगों को भगवान के अतिरिक्‍त और कोई नहीं देख सकता। विग्रह की आंख खुलते ही दर्पण दिखाने से वह चकनाचूर हो जाता है। दर्पण का टूटना इस बात का प्रमाण है कि मूर्ति में देवत्‍व का वास हो गया है।

शुभ मुहूर्त के बाद भी मुहूर्त शुद्धि क्‍यों?

मुहूर्त कितना भी शुद्ध क्‍यों न हो, उसकी शुद्धि का विधान अवश्‍य करना चाहिए। मुहूर्त शुद्धि के लिए स्‍वर्ण दान सबसे उत्तम माना गया है।

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