सुप्रीम कोर्ट ने कहा – ‘सरकारों के पास मुफ्त की योजनाओं के लिए खूब पैसे, लेकिन जजों के वेतन और पेंशन के लिए नहीं’
नई दिल्ली, 7 जनवरी। सुप्रीम कोर्ट ने जिला अदालत के न्यायाधीशों के वेतन और पेंशन को लेकर सरकारों के रवैये पर निराशा व्यक्त की है। शीर्ष अदालत ने विभिन्न राज्य सरकारों की तरफ से मुफ्त में बांटे जाने वाले पैसों की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘जो कोई काम नहीं करते, उनके लिए आपके पास पैसे हैं। लेकिन जब जजों के वेतन और पेंशन का सवाल आता है तो आर्थिक दिक्कतों का हवाला देने लगते हैं।’
ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन नाम की संस्था की तरफ से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अलग-अलग पार्टियों की तरफ से हो रही घोषणाओं की चर्चा की। कोर्ट ने कहा, ‘चुनाव आते ही लाडली बहन जैसी योजनाओं की घोषणा शुरू हो जाती है, जहां लाभार्थियों को हर महीने एक तय रकम देने की बात की जाती है। दिल्ली में पार्टियां सत्ता में आने पर हर महीने 2500 रुपये तक देने का वादा कर रही हैं।’
‘फ्रीबिज एक अस्थायी व्यवस्था‘ – केंद्र सरकार
वर्ष 2015 में दाखिल इस याचिका में जजों के कम वेतन और सेवानिवृत्ति के बाद उचित पेंशन न मिलने की बात कही गई है। इस बारे में पूरे देश में एक जैसी नीति न होने का भी हवाला दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अपनी सहायता के लिए वरिष्ठ वकील के परमेश्वर को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के लिए पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने कहा कि सरकारों की तरफ से दी जाने वाली फ्रीबिज (मुफ्त की योजनाएं) एक अस्थायी व्यवस्था है। वेतन और पेंशन में बढ़ोतरी एक स्थायी बात है। राजस्व पर इसके असर पर विचार करना ज़रूरी है।
अब स्थगित नहीं होगी सुनवाई – सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की दो सदस्यीय बेंच को अटॉर्नी जनरल ने बताया कि केंद्र सरकार एक अधिसूचना लाने पर विचार कर रही है, जिससे याचिका में उठाई गई चिंताओं का हल हो सकेगा। इस पर जजों ने कहा कि सरकार अगर भविष्य में ऐसा करती है तो इसकी जानकारी उन्हें दे। चूंकि यह मामला काफी समय से लंबित है, इसलिए इसकी सुनवाई अब स्थगित नहीं की जाएगी।