उम्मीद पोर्टल के तहत वक्फ के अनिवार्य पंजीकरण के खिलाफ याचिका पर तत्काल सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
नई दिल्ली, 22 अगस्त। उच्चतम न्यायालय ने ‘उम्मीद’ पोर्टल के तहत ‘वक्फ बाई यूजर’ समेत सभी वक्फ संपत्तियों के अनिवार्य पंजीकरण को चुनौती देने वाली एक अंतरिम याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया। केंद्र ने 6 जून को सभी वक्फ संपत्तियों की जियो-टैगिंग के बाद एक डिजिटल सूची बनाने के लिए एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995 (उम्मीद) केंद्रीय पोर्टल शुरू किया था।
इस पोर्टल पर पूरे भारत में सभी पंजीकृत वक्फ संपत्तियों का विवरण छह महीने के भीतर अनिवार्य रूप से अपलोड किया जाना है। गत 22 मई को, प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने वक्फ मामले में तीन प्रमुख मुद्दों पर अंतरिम आदेश सुरक्षित रखा था। इनमें से एक मुद्दा वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 में निर्धारित ‘अदालतों द्वारा वक्फ, उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ या विलेख द्वारा वक्फ’ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने की शक्ति से संबंधित है।
शुक्रवार को, एक वकील ने पीठ को बताया कि केंद्र के पास एक पोर्टल है जो ‘वक्फ बाई यूजर सहित सभी वक्फों के अनिवार्य पंजीकरण’ का आह्वान करता है। वकील ने कहा, ‘‘हमने निर्देशों के लिए एक अंतरिम आवेदन दायर करने की मांग की, लेकिन (उच्चतम न्यायालय) रजिस्ट्री यह कहते हुए इसकी अनुमति नहीं दे रही है कि फैसला पहले ही सुरक्षित रखा जा चुका है।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमने इस मामले में आदेश पहले ही सुरक्षित रख लिया है।’’ वकील ने कहा कि समस्या यह है कि समय बीत रहा है और केंद्र ने संपत्तियों के पंजीकरण के लिए छह महीने का समय दिया है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आप इसे पंजीकृत करें… कोई भी आपको पंजीकरण से मना नहीं कर रहा है।’’
उन्होंने कहा कि इस पहलू पर बाद में विचार किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने वक्फ संपत्तियों की अधिसूचना रद्द करने और राज्य वक्फ बोर्डों व केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना सहित विभिन्न मुद्दों पर फैसला सुरक्षित रखा।
तीसरा मुद्दा उस प्रावधान से संबंधित है जिसके अनुसार, जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करते हैं कि संपत्ति सरकारी है या नहीं, तो वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा। केंद्र ने इस अधिनियम का पुरजोर बचाव करते हुए कहा है कि वक्फ अपने स्वभाव से ही एक ‘धर्मनिरपेक्ष अवधारणा’ है और इसके पक्ष में ‘संवैधानिकता की धारणा’ को देखते हुए इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती है।
