बेंगलुरु, 9 फरवरी। देश के दक्षिणी राज्य कर्नाटक में उपजे हिजाब विवाद को लेकर दाखिल याचिकाओं पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने बुधवार को भी सुनवाई की। मामले की सुनवाई कर रहे उच्च न्यायालय के जज जस्टिस कृष्ण दीक्षित ने इसे बड़ी बेंच में भेजने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि इस मामले में अंतरिम राहत के सवाल पर भी बड़ी बेंच ही विचार करेगी।
गौरतलब है कि राज्य के कॉलेजों में हिजाब पहनने की मंजूरी न देने के खिलाफ कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं। जस्टिस कृष्ण दीक्षित की एकल पीठ ने मंगलवार को भी इन पर सुनवाई की थी। कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि मामला काफी गंभीर है और इसे बड़ी बेंच को भेजे जाने की जरूरत है।
कर्नाटक सरकार ने याचिकाओं का किया विरोध
इससे पहले कर्नाटक सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस मामले में दायर सभी याचिकाएं गलत हैं। इन याचिकाओं में सरकार के शासनादेश पर सवाल उठाया गया है जबकि सरकार ने सभी संस्थानों को स्वायत्तता प्रदान कर रखी है। राज्य इस पर फैसला नहीं लेता है। ऐसे में प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता।
राज्य के सभी स्कूल-कॉलेजों में यूनिफॉर्म कर दी गई है अनिवार्य
ज्ञातव्य है कि कर्नाटक सरकार ने राज्य में Karnataka Education Act-1983 की धारा 133 लागू कर दी है। इस वजह से अब सभी स्कूल-कॉलेजों में यूनिफॉर्म को अनिवार्य कर दिया गया है। इसके तहत सरकारी स्कूल और कॉलेज में तो तय यूनिफॉर्म पहनी ही जाएगी, प्राइवेट स्कूल भी अपनी खुद की एक यूनिफॉर्म चुन सकते हैं।
पिछले माह उडुपी के एक सरकारी कॉलेज से शुरू हुआ था विवाद
इस फैसले को लेकर विवाद पिछले महीने जनवरी में तब शुरू हुआ था, जब उडुपी के एक सरकारी कॉलेज में छह छात्राओं ने हिजाब पहनकर कॉलेज में एंट्री ली थी। विवाद इस बात को लेकर था कि कॉलेज प्रशासन ने छात्राओं को हिजाब पहनने के लिए मना किया था, लेकिन फिर भी वे पहनकर आ गई थीं। उसके बाद से ही दूसरे कॉलेजों में भी हिजाब को लेकर बवाल शुरू हो गया।
देश के कई हिस्सों में इस मुद्दे को लेकर छिड़ गई है बहस
कर्नाटक के स्कूल-कॉलेजों में धार्मिक लिबास हिजाब पर रोक के आदेश के बाद शुरू हुआ विवाद अब देश के अन्य कई राज्यों में पहुंच गया है। इसपर अब विभिन्न पार्टियों के राजनेता भी आमने-सामने हैं। दिल्ली-मुंबई में भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं जबकि संसद के बजट सत्र के दौरान मंगलवार को कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने यह मुद्दा लोकसभा में उठाया और कहा कि सरकार को इस बारे में संसद में बयान देना चाहिए।