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श्रीकृष्ण जन्‍मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में मुस्लिम पक्ष को झटका, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज की याचिका

श्रीकृष्ण जन्‍मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में मुस्लिम पक्ष को झटका, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज की याचिका

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मथुरा/प्रयागराज, 1 अगस्त। मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि- शाही ईदगाह विवाद मामले में मुस्लिम पक्ष को झटका लगा, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बुधवार को उसकी आपत्तियों से जुड़ी या‍चिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन के इस फैसले से हिन्दू पक्ष को बड़ी राहत मिली है।

उल्लेखनीय है कि ये मुकदमे शाही ईदगाह मस्जिद का ढांचा हटाकर जमीन का कब्जा देने और मंदिर का पुनर्निर्माण कराने की मांग को लेकर दायर किए गए थे। पूरा विवाद मुगल सम्राट औरंगजेब के समय की शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है। इसका निर्माण भगवान कृष्ण की जन्मस्थली पर बने मंदिर को कथित तौर पर ध्वस्त करने के बाद किया गया।

हिन्दू पक्ष की याचिकाओं में शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन को हिन्दुओं का बताया है और वहां पूजा का अधिकार दिए जाने की मांग की गई है। वहीं, मुस्लिम पक्ष ने वक्‍फ एक्‍ट आदि का हवाला देते हुए हिन्दू पक्ष की याचिकाओं को खारिज किए जाने की दलील पेश की है।

हाई कोर्ट के फैसले के बाद अब ट्रायल शुरू होगा

अपने फैसले में हाई कोर्ट ने कहा कि मालिकाना हक को लेकर हिन्दू पक्ष की याचिकाएं सुनवाई योग्‍य हैं। इन पर सुनवाई जारी रहेगी। अदालत ने मुस्लिम पक्ष की आपत्तियों को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट के फैसले के बाद अब इस विवाद से जुड़े मामलों में ट्रायल शुरू होगा।

हिन्दू पक्षकारों की ये है दलील

  • ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ एरिया श्रीकृष्‍ण विराजमान का गर्भगृह है।
  • शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी के पास भूमि का कोई ऐसा रिकॉर्ड नहीं है।
  • श्रीकृष्‍ण मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया है।
  • बिना स्‍वामित्‍व अधिकार के वक्‍फ बोर्ड ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के इस भूमि को वक्‍फ संपत्ति घोषित कर दिया है।

मुस्‍लिम पक्षकारों की दलील

  • मुस्लिम पक्षकारों का तर्क है कि इस जमीन पर दोनों पक्षों के बीच 1968 में समझौता हुआ है। 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं है, लिहाजा मुकदमा चलने योग्‍य नहीं है।
  • उपासना स्‍थल कानून यानिी प्‍लेसेज ऑफ वर्शिप एक्‍ट 1991 के तहत भी मुकदमा सुनवाई योग्‍य नहीं है।
  • 15 अगस्‍त, 1947 के दिन जिस धार्मिक स्‍थल की पहचान और प्रकृति जैसी है, वैसी ही बनी रहेगी। यानी उसकी प्रकृति नहीं बदली जा सकती है।

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