नई दिल्ली, 17 मई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि शक्ति हो तो दुनिया प्रेम की भाषा भी सुनती है। पिछले दिनों जयपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में उपने विचार साझा करते हए उन्होंने भारत की प्राचीन संस्कृति और त्याग की परंपरा को याद दिलाया। उन्होंने बताया कि भारत के इतिहास में भगवान श्री राम से लेकर भामाशाह जैसे महान व्यक्तित्वों ने त्याग और सेवा की मिसाल पेश की है।
विश्व को धर्म सिखाना भारत का कर्तव्य
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि विश्व को धर्म सिखाना भारत का कर्तव्य है। धर्म के माध्यम से ही मानवता की उन्नति संभव है। उन्होंने विशेष रूप से हिन्दू धर्म की भूमिका को महत्वपूर्ण माना और कहा कि विश्व कल्याण हमारा प्रमुख धर्म है। उन्होंने भारत को दुनिया का सबसे प्राचीन देश करार देते हुए कहा कि भारत की भूमिका बड़े भाई की जैसी है।
विश्व में शांति और सौहार्द कायम करने की दिशा में प्रायसरत!
आरएसएस प्रमुख का कहना था कि भारत विश्व में शांति और सौहार्द कायम करने की दिशा में निरंतर प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि भारत किसी से द्वेष नहीं रखता, लेकिन जब तक आपके पास शक्ति नहीं होगी, तब तक विश्व प्रेम और मंगल की भाषा नहीं समझेगा। इसलिए उनके विश्व कल्याण के लिए शक्ति का होना आवश्यक है, और ये कि हमारी ताकत विश्व ने देखी है।
शक्ति ही एक माध्यम है!
डॉ. भागवत ने यह भी बताया कि शक्ति ही वह माध्यम है, जिससे विश्व में भारत अपनी बात प्रभावी ढंग से रख सकता है और वह पहले भी कह चुके हैं कि अपनी सांस्कृतिक विरासत का प्रसार भी तभी किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह स्वभाव विश्व का है, इसे बदला नहीं जा सकता। इसके साथ ही उन्होंने संत समाज की भूमिका की भी प्रशंसा की और कहा कि ऋषि परंपरा का निर्वहन करते हुए संस्कृति और धर्म की रक्षा कर रहे हैं।
