प्रियंका ने केंद्र को फिर घेरा, बोलीं – कोरोना के आंकड़े सार्वजनिक न करने से स्थिति हुई भयावह
नई दिल्ली, 7 जून। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कोरोना महामारी से अब तक हुई मौतों के आंकड़ों को लेकर एक बार फिर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। उन्होंने इस बाबत लिखी गई एक पोस्ट में आरोप लगाया है कि सरकार द्वारा कोरोना के सही आंकड़े प्रस्तुत न करने से देश में स्थिति इतनी भयावह हो गई।
प्रियंका गांधी ने पोस्ट में लिखा है, ‘कोरोना महामारी में लोगों ने सरकार से आंकड़ों की पारदर्शिता की आवश्यकता स्पष्ट की थी। ऐसा इसलिए जरूरी है कि आंकड़ों से ही पता लगता है कि बीमारी का फैलाव क्या है, संक्रमण ज्यादा कहां है, किन जगहों को सील करना चाहिए या फिर कहां टेस्टिंग बढ़ानी चाहिए। लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ।’
आंकड़ों का बाजीगरी का माध्यम बना रही केंद्र सरकार
कांग्रेस नेता ने कहा कि विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान आंकड़ों को सार्वजनिक न करना दूसरी लहर में इतनी भयावह स्थिति पैदा होने का एक बड़ा कारण था। जागरूकता का साधन बनाने की बजाय सरकार ने आंकड़ों को बाजीगरी का माध्यम बना डाला।
उन्होंने कहा कि सरकार ने शुरू से ही कोरोना वायरस से हुई मौतों एवं कोरोना संक्रमण की संख्या को आबादी के अनुपात में दिखाया, लेकिन टेस्टिंग के आंकड़ों की कुल संख्या अब तक बताई जा रही है। आज भी वैक्सिनेशन के आंकड़ों की कुल संख्या दी जा रही है, आबादी का अनुपात नहीं। साथ ही उसमें पहली व दूसरी डोज को एक में ही जोड़कर बताया जा रहा है। यह आंकड़ों की बाजीगरी ही तो है।
उत्तर प्रदेश में भी टेस्टिंग के आंकड़ों में खूब हेरफेर
प्रियंका ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने टेस्टिंग के आंकड़ों में बड़ी हेरफेर की। सरकार ने कुल टेस्ट की संख्या में आरटी-पीसीआर एवं एंटीजन टेस्ट के आंकड़ों को अलग-अलग करके नहीं बताया। इसके चलते कुल संख्या में तो टेस्ट ज्यादा दिखे, लेकिन वायरस का पता लगाने की एंटीजन टेस्ट की सीमित क्षमता के चलते वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या का सही अंदाजा नहीं लग सका।
उन्होंने कहा, ‘सरकार से सवाल पूछा जाना जरूरी है कि आखिर क्यों वैज्ञानिकों द्वारा बार-बार मांगने के बावजूद कोरोना वायरस के बर्ताव एवं बारीक अध्ययन से जुड़े आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया? जबकि इन आंकड़ों को सार्वजनिक करने से वायरस की गति और फैलाव की जानकारी ठीक तरह से होती और हजारों जानें बचाई जा सकती थीं।’