स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्र के नाम संबोधन – देशवासियों से महिला सशक्तीकरण को प्राथमिकता देने की अपील
नई दिल्ली, 14 अगस्त। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को 77वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन में महिलाओं के विकास को स्वाधीनता संग्राम का आदर्श बताते हुए देशवासियों से महिला सशक्तीकरण को प्राथमिकता देने की अपील की ताकि आधी आबादी साहस के साथ हर तरह की चुनौतियों का सामना करें और जीवन में आगे बढ़े।
‘आर्थिक सशक्तीकरण से परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति मजबूत होती है‘
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि आज की महिलाओं ने ऐसे अनेक क्षेत्रों में अपना विशेष स्थान बना लिया है, जिनमें कुछ दशक पहले उनकी भागीदारी की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। उन्होंने कहा, ‘मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि हमारे देश की महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। आर्थिक सशक्तीकरण से परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति मजबूत होती है।’
द्रौपदी मुर्मू ने कहा, ‘मैं सभी देशवासियों से आग्रह करती हूं कि वे महिला सशक्तीकरण को प्राथमिकता दें। मैं चाहूंगी कि हमारी बहनें और बेटियां साहस के साथ हर तरह की चुनौतियों का सामना करें और जीवन में आगे बढ़ें। महिलाओं का विकास, स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों में शामिल है।’
उन्होंने कहा कि मातंगिनी हाजरा और कनकलता बरूआ जैसी वीरांगनाओं ने भारत माता के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिये। मां कस्तूरबा, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ कदम मिलाकर सत्याग्रह के मार्ग पर चलती रही। सरोजिनी नायडू, अम्मू स्वामीनाथन, रमा देवी, अरुणा आसफ अली और सुचेता कृपलानी जैसी महिला विभूतियों ने अपने बाद की सभी पीढ़ियों की महिलाओं के लिए आत्मविश्वास के साथ देश तथा समाज की सेवा करने के प्रेरक आदर्श प्रस्तुत किए हैं।
‘स्वतंत्रता दिवस के साथ हम महान लोकतंत्र के नागरिक होने का उत्सव भी मनाते हैं‘
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, ‘जब हम स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाते हैं तो वास्तव में हम एक महान लोकतंत्र के नागरिक होने का उत्सव भी मनाते हैं। हममें हर एक की अलग- अलग पहचान है। जाति पंथ, भाषा और क्षेत्र के अलावा हमारी अपने परिवार और कार्य क्षेत्र से जुड़ी पहचान भी होती है। लेकिन हमारी एक पहचान ऐसी है, जो इन सबसे उपर है और वह है भारत का नागरिक होना। हम सभी समान रूप से इस महान देश के नागरिक हैं । हम सब को समान अवसर और अधिकार उपलब्ध हैं और हमारे कर्तव्य भी समान हैं।’
द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि लेकिन ऐसा हमेशा नहीं था, भारत लोकतंत्र की जननी है और प्राचीन काल में भी यहां जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक संस्थाएं विद्यमान थीं, किन्तु लंबे समय तक चले औपनिवेशिक शासन ने उन लोकतांत्रिक संस्थाओं के मिटा दिया था। उन्होंने कहा कि 15 अगस्त, 1947 के दिन राष्ट्र ने एक नया सवेरा देखा, जब देश ने विदेशी शासन से तो आजादी हासिल की, साथ ही अपनी नियति का निर्माण करने की भी स्वतंत्रता प्राप्त की। राष्ट्रपति ने कहा कि स्वाधीनता के बाद विदेशी शासकों द्वारा उपनिवेशों को छोड़ने का दौर शुरू हुआ और उपनिवेशवाद समाप्त होने लगा।
महात्मा गांधी सहित अन्य महानायकों ने भारत की आत्मा को फिर से जगाया
उन्होंने कहा, ‘हमारे लिए स्वाधीनता के लक्ष्य को प्राप्त करना तो महत्वपूर्ण था ही, लेकिन उससे अधिक उल्लेखनीय है हमारे स्वाधीनता संग्राम का अनोखा तरीका।’ स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि महात्मा गांधी तथा कई अन्य असाधारण और दूरदर्शी विभूतियों के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन अद्वितीय आदर्शो से अनुप्रमाणित था। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी तथा अन्य महानायकों ने भारत की आत्मा को फिर से जगाया और देश की महान सभ्यता के मूल्यों का जन जन में संचार किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के ज्वलंत उदाहरण का अनुसरण करते हुए स्वाधीनता संग्राम की अधारशिला ‘सत्य और अहिंसा’ को पूरी दुनिया के अनेक राजनीतिक संघर्ष में सफलतापूर्वक अपनाया गया है। उन्होंने कहा, ‘स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर मैं भारत के नागरिकों को एकजुट होकर सभी ज्ञात और अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों को कृतज्ञतापूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं। उनके असंख्य बलिदानों से भारत ने विश्व समुदाय में अपन स्वाभिमानपूर्ण स्थान फिर से प्राप्त किया।’