वाराणसी, 7 जुलाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंग्रेजों के समय से देश में लागू शिक्षा व्यवस्था को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा अपने लिए एक ‘सेवक वर्ग’ तैयार करने के लिए बनाई गई व्यवस्था करार देते हुए गुरुवार को कहा कि अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था कभी भारत के मूल स्वभाव का हिस्सा नहीं थी और न हो सकती है। अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में आयोजित अखिल भारतीय शिक्षा समागम के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति नई पीढ़ी को आने वाले कल के लिए तैयार करने की बुनियाद रखेगी।
पहले ही व्यवस्था में शिक्षा का मतलब सिर्फ नौकरी पाना ही था
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की ड्रॉफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन के. कस्तूरीरंगन और यूजीसी के चेयरमैन प्रो. एम. जगदीश कुमार सहित अन्य गणमान्य हस्तियों की मौजूदगी में पीएम मोदी ने कहा, ‘पहले पढ़ाई की ऐसी व्यवस्था बनाई गई थी, जिसमें शिक्षा का मकसद केवल और केवल नौकरी पाना ही था। अंग्रेजों ने अपनी जरूरतों को पूरा करने और अपने लिए एक सेवक वर्ग तैयार करने के लिए वह शिक्षा व्यवस्था दी थी। आजादी के बाद इसमें थोड़े बहुत बदलाव हुए थे, लेकिन बहुत सारा बदलाव रह गया। अंग्रेजों की बनाई हुई व्यवस्था कभी भी भारत के मूल स्वभाव का हिस्सा नहीं थी और न हो सकती है।’
‘ज्ञान और बहुआयामी शिक्षा की व्यवस्था हमारी प्रेरणास्रोत होनी चाहिए‘
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमारे देश में शिक्षा में अलग-अलग कलाओं की धारणा थी। बनारस ज्ञान का केंद्र केवल इसलिए नहीं था कि यहां अच्छे गुरुकुल और शिक्षण संस्थान थे बल्कि इसलिए था क्योंकि यहां ज्ञान और शिक्षा बहुआयामी थी। शिक्षा की यही व्यवस्था हमारी प्रेरणास्रोत होनी चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘‘ हम केवल डिग्री धारक युवा तैयार न करें बल्कि देश को आगे बढ़ने के लिए जितने भी मानव संसाधनों की जरूरत है, वह हमारी शिक्षा व्यवस्था हमारे देश को उपलब्ध कराएं। इस संकल्प का नेतृत्व हमारे शिक्षक और शिक्षण संस्थानों को करना है।’
शिक्षा में आधुनिकता के साथ कदमताल की जरूरत
पीएम मोदी ने शिक्षा में आधुनिकता के साथ कदमताल की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, ‘हमें यह पता होना चाहिए कि दुनिया आगे किस तरफ जा रही है, कैसे जा रही है और उसमें हमारा देश और हमारे युवा कहां हैं। आने वाले 15-20 सालों में भारत उन बच्चों के हाथों में होगा, जिन्हें हमें तैयार करना है। यह हमारा बहुत बड़ा दायित्व है। इसी ट्रैक पर हमारे शिक्षण संस्थानों को भी खुद से पूछने की जरूरत है कि क्या हम भविष्य के लिए तैयार हैं?’
‘हमें बच्चों की उत्सुकता देखते हुए उन्हें भविष्य के लिए तैयार करना होगा‘
उन्होंने कहा, ‘आपको वर्तमान को तो संभालना ही है, लेकिन आज जो काम कर रहे हैं, उन्हें भविष्य के लिए भी सोचना होगा। उसी हिसाब से हमें अपने बच्चों को तैयार करना होगा। हमें यह देखना होगा कि अभी जिस उम्र में हमारे बच्चों के अंदर उत्सुकता है, उसी उम्र में हमें उन्हें भविष्य के लिए तैयार करना होगा।’
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के महत्व का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के बाद अब युवाओं पर दायित्व और बढ़ गया है। इसके साथ ही हमारी भी जिम्मेदारी बढ़ गई है कि हम युवाओं के सपनों और उड़ानों को निरंतर उत्साहित करें, उनके मन को समझें, उनकी आकांक्षाओं को समझें।’
3 दिवसीय शिक्षा समागम में 300 से अधिक शिक्षाविद भाग ले रहे
इस तीन दिवसीय शिक्षा समागम में विश्वविद्यालयों के कुलपति, उच्च शैक्षणिक संस्थानों के निदेशक सहित 300 से अधिक शिक्षाविद शामिल हो रहे हैं। सम्मेलन का उद्देश्य पिछले दो वर्षों में कई पहलों के सफल कार्यान्वयन के बाद देशभर में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने की नीतियों पर व्यापक विचार-विमर्श करना है।