पीएम मोदी बोले – परिवारवाद के शिकंजे से निकलें पार्टियां, तभी भारत का लोकतंत्र मजबूत होगा’
कानपुर, 3 जून। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से अपील की है कि वे पारिवारिक शिकंजे से निकलें, तभी देश का लोकतंत्र मजबूत होगा। उन्होंने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कानपुर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पैतृक गांव परौंख में एक जनसभा को संबोधित करते हुए यह बात कही।
पीएम मोदी ने कहा, ‘मैं तो चाहता हूं कि परिवारवाद के शिकंजे में फंसी पार्टियां खुद को इस बीमारी से मुक्त करें, खुद अपना इलाज करें। तभी भारत का लोकतंत्र मजबूत होगा और देश के युवाओं को राजनीति में आने का ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलेगा। मेरी किसी राजनीतिक दल से या किसी व्यक्ति से कोई व्यक्तिगत नाराजगी नहीं है। मैं तो चाहता हूं कि देश में एक मजबूत विपक्ष हो, लोकतंत्र को समर्पित राजनीतिक पार्टियां हों।’
राष्ट्रपति कोविंद के पैतृक गांव परौंख में पीएम मोदी ने पथरी माता मंदिर पूजा-अर्चना की
प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति कोविंद और उनके पैतृक गांव परौंख की सराहना करते हुए कहा कि परौंख की मिट्टी से राष्ट्रपति को जो संस्कार मिले हैं, उसकी साक्षी दुनिया बन रही है। इस दौरान राष्ट्रपति कोविंद और पीएम मोदी ने परौंख गांव में पथरी माता मंदिर में पूजा-अर्चना की और एक सार्वजनिक समारोह में शामिल भी हुए। समारोह में यूपी के मुख्यमंत्री और राज्यपाल दोनों ही मौजूद थे।
‘राष्ट्रपति जी के सहज भाव से मैं शर्मिंदगी महसूस कर रहा था‘
पीएम मोदी ने परौंख गांव में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, “मैं शर्मिंदगी महसूस कर रहा था कि उनके मार्गदर्शन में हम काम कर रहे हैं, उनके पद की एक गरिमा है, वरिष्ठता है। मैंने कहा कि ‘राष्ट्रपति जी आपने मेरे साथ अन्याय कर दिया तो उन्होंने सहज रूप से कहा कि संविधान की मर्यादाओं का पालन तो मैं करता हूं, लेकिन कभी-कभी संस्कार की अपनी ताकत होती है, आज आप मेरे गांव में आए हैं, मैं यहां पर अतिथि का सत्कार करने आया हूं।’ अतिथि देवो भव का उत्तम उदाहरण राष्ट्रपति जी ने प्रस्तुत किया है।”
‘भारत के गांवों का सशक्तिकरण केंद्र सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में एक‘
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं राष्ट्रपति जी के साथ विभिन्न स्थानों को देख रहा था तो मैंने परौंख में भारतीय गांव की कई आदर्श छवियों को महसूस किया। यहां सबसे पहले मुझे पथरी माता का आशीर्वाद लेने का अवसर मिला। महात्मा गांधी भारत की आजादी को भारत के गांव से जोड़कर देखते थे। भारत का गांव यानी जहां आध्यात्म भी हो, आदर्श भी हो। भारत का गांव यानी जहां परम्पराएं भी हों और प्रगतिशीलता भी हो। भारत का गांव यानी जहां संस्कार भी हो, सहकार भी हो। जहां ममता भी हो और समता भी हो। हमारे गांवों के पास सबसे ज्यादा सामर्थ्य है, सबसे ज्यादा श्रम शक्ति है और सबसे ज्यादा समर्पण भी है। इसलिए भारत के गांवों का सशक्तिकरण हमारी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है।’