
पीएम मोदी ने की ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ की सराहना, बोले – यह भारत का बौद्धिक पुनर्जागरण
नई दिल्ली, 2 अप्रैल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दशक में भारत के शिक्षा क्षेत्र में हुए ऐतिहासिक परिवर्तन पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की सराहना की है। पीएम मोदी ने इसे भारत का बौद्धिक पुनर्जागरण बताया, जिसने शिक्षा और नवाचार के माध्यम से विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी और आत्मनिर्भर राष्ट्र का मार्ग प्रशस्त किया है।
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर की गई पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री @dpradhanbjp ने बताया कि पिछले दशक में भारत के शिक्षा क्षेत्र में किस तरह ऐतिहासिक परिवर्तन हुआ है। एनईपी 2020 एक सुधार से कहीं अधिक है, यह भारत का बौद्धिक पुनर्जागरण है, जो शिक्षा और नवाचार के माध्यम से एक आत्मनिर्भर और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी राष्ट्र का मार्ग प्रशस्त करता है।’
Union Education Minister Shri @dpradhanbjp highlights how India’s education sector has undergone a historic transformation in the last decade. NEP 2020 is more than a reform; it is India’s intellectual renaissance, paving the way for a self-reliant, globally competitive nation… https://t.co/CNZgoqbBvT
— PMO India (@PMOIndia) April 2, 2025
धर्मेंद्र प्रधान ने अपने एक्स हैंडल पर एक पोस्ट में अंग्रेजी के राष्ट्रीय समाचार पत्र ‘द हिन्दू’ में छपे लेख को साझा किया है। उन्होंने एक्स पर कहा कि यह तर्क सत्य से बहुत दूर है कि पिछले दशक में शिक्षा प्रणाली अपनी दिशा से भटक गई है। भ्रष्टाचार और शासन की कमी देश के शैक्षिक अतीत की परिभाषित विशेषताएं थीं। एनईपी 2020 इस कलंकपूर्ण अतीत से एक निर्णायक विराम का प्रतिनिधित्व करता है। यह केवल एक शिक्षा सुधार नहीं है, यह बौद्धिक विउपनिवेशीकरण है जिसका भारत लंबे समय से इंतजार कर रहा था।
इस लेख में केंद्रीय शिक्षा मंत्री प्रधान ने कहा कि वह भारत के शैक्षिक परिवर्तन की सच्ची तस्वीर दिखाने के लिए लिखते हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद जैसी संस्थाएं उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के बजाय नियंत्रण के साधन बन गई हैं तथा विश्वविद्यालयों में नेतृत्व के लिए नियुक्तियां राजनीतिक निष्ठा पर आधारित हैं।
उन्होंने कहा कि पाठ्यपुस्तकों में जान बूझकर शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, वीर सावरकर और अन्य क्रांतिकारियों के योगदान को कम करके दिखाया गया है जबकि विदेशी आक्रमणों के बारे में असहज ऐतिहासिक सच्चाइयों को दर्शाया गया है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने लेख में लिखा कि पक्षपातपूर्ण हितों की पूर्ति के लिए ऐतिहासिक आख्यानों को सावधानीपूर्वक तैयार किया गया। भारत की विविध सांस्कृतिक और बौद्धिक परंपराओं को व्यवस्थित रूप से हाशिए पर रखा गया। इन सभी ने एक ऐसी शिक्षा प्रणाली बनाने में योगदान दिया जो भारत के गौरवशाली अतीत से कटी रही और सभ्यतागत लोकाचार रहित रही।
धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि आने वाला दशक एक शैक्षिक पुनर्जागरण का गवाह बनेगा, जो भारत के अतीत का सम्मान करते हुए भविष्य को निडरता से गले लगाएगा। भारत की शिक्षा प्रणाली अंततः औपनिवेशिक छाया और वैचारिक कैद से मुक्त हो गई है। यह लाखों भारतीयों के सपनों को पूरा करने के लिए तैयार है।