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झारखंड : ‘श्री सम्मेद शिखरजी’ विवाद में नया मोड़, पारसनाथ पहाड़ी को आदिवासी समुदाय ने बताया ‘मरांग बुरु’

झारखंड : ‘श्री सम्मेद शिखरजी’ विवाद में नया मोड़, पारसनाथ पहाड़ी को आदिवासी समुदाय ने बताया ‘मरांग बुरु’

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रांची/ नई दिल्ली, 6 जनवरी। झारखंड में जैन समुदाय के धार्मिक स्थल ‘श्री सम्मेद शिखरजी’ से संबंधित पारसनाथ पहाड़ी पर सभी प्रकार की पर्यटन गतिविधियों पर केंद्र सरकार ने रोक लगा दी। झारखंड सरकार को इसकी ‘शुचिता अक्षुण्ण’ रखने के लिए तत्काल सभी जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए।

फिलहाल अब आदिवासी भी मैदान में कूद पड़े हैं और उन्होंने इस इलाके पर अपना दावा जताया है। इसे मुक्त करने की मांग की है। संथाल जनजाति के नेतृत्व वाले राज्य के आदिवासी समुदाय ने पारसनाथ पहाड़ी को ‘मरांग बुरु’ (पहाड़ी देवता या शक्ति का सर्वोच्च स्रोत) करार दिया है। उनकी मांगों पर ध्यान न देने पर विद्रोह की चेतावनी दी है।

मरांग बुरु को जैनियों से मुक्त करने की मांग

देशभर के जैन धर्मावलम्बी पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल के रूप में नामित करने वाली झारखंड सरकार की 2019 की अधिसूचना को रद करने की मांग कर रहे हैं। उन्हें डर है कि उनके पवित्र स्थल पर मांसाहारी भोजन और शराब का सेवन करने वाले पर्यटकों का तांता लग जाएगा।

वहीं अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने दावा किया, ‘अगर सरकार मरांग बुरु को जैनियों के चंगुल से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में विद्रोह होगा।’

मुर्मू ने कहा, “हम चाहते हैं कि सरकार दस्तावेजीकरण के आधार पर कदम उठाए। (वर्ष) 1956 के राजपत्र में इसे ‘मरांग बुरु’ के रूप में उल्लेख किया गया है। जैन समुदाय अतीत में पारसनाथ के लिए कानूनी लड़ाई हार गया था। संथाल जनजाति देश के सबसे बड़े अनुसूचित जनजाति समुदाय में से एक है, जिसकी झारखंड, बिहार, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल में अच्छी खासी आबादी है और ये प्रकृति पूजक हैं। परिषद की संरक्षक स्वयं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और इसके अध्यक्ष असम के पूर्व सांसद पी मांझी हैं।”

संथालों के सर्वोच्च पूजा स्थल पर अवैध रूप से कब्जा

एक अन्य आदिवासी संगठन ‘आदिवासी सेंगल अभियान’ (एएसए) ने भी आरोप लगाया कि जैनियों ने संथालों के सर्वोच्च पूजा स्थल पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है। इसके अध्यक्ष पूर्व सांसद सलखन मुर्मू ने चेतावनी दी कि अगर केंद्र और राज्य सरकारें इस मुद्दे को हल करने और आदिवासियों के पक्ष में निर्णय देने में विफल रहीं तो उनका समुदाय पूरे भारत में सड़कों पर उतरेगा।

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