
मुंबई, 20 मार्च। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर युजवेंद्र चहल और उनकी अलग रह रहीं पत्नी धनश्री वर्मा की आपसी सहमति से तलाक के लिए दायर संयुक्त याचिका को मुंबई की कुटुंब अदालत ने गुरुवार को मंजूरी दे दी। लंबे समय से दोनों के बीच चल रहे मतभेदों के बाद यह फैसला आया, जिससे उनका वैवाहिक जीवन आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया।
बांद्रा स्थित अदालत में पेश हुए चहल और धनश्री ने तलाक की सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया। चहल के वकील नितिन गुप्ता ने जानकारी देते हुए कहा कि अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि दोनों पक्षों ने सहमति की शर्तों का पालन किया है। इसके बाद अदालत ने तलाक को मंजूरी दे दी।
2020 में हुई थी शादी, 2022 से दोनों अलग रह रहे थे
उल्लेखनीय है कि चहल और धनश्री ने दिसम्बर, 2020 में शादी की थी, लेकिन दोनों जून, 2022 से अलग रह रहे थे। पांच फरवरी को उन्होंने आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए कुटुंब अदालत में एक संयुक्त याचिका दायर की थी। इस मामले में उच्च न्यायालय ने बुधवार को कुटुंब अदालत को निर्देश दिया था कि वह गुरुवार तक इस याचिका पर फैसला सुनाए क्योंकि चहल इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के आगामी सत्र में व्यस्त हो जाएंगे। आईपीएल 2025 का टी20 टूर्नामेंट 22 मार्च से शुरू हो रहा है और चहल इस सीजन में पंजाब किंग्स टीम का हिस्सा हैं। इसी कारण अदालत ने उनके अनुरोध पर शीघ्र सुनवाई की।
आईपीएल 2025 में पंजाब किंग्स के लिए खेलेंगे चहल
गौरतलब है कि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के मामलों में आमतौर पर छह महीने की सुलह अवधि दी जाती है, ताकि जोड़े को अपने मतभेद सुलझाने का अवसर मिल सके। हालांकि, चहल और धनश्री ने उच्च न्यायालय में एक संयुक्त याचिका दायर कर इस छह महीने की अनिवार्य अवधि को माफ करने का अनुरोध किया था।
धनश्री को कुल 4.75 करोड़ रुपये का भुगतान करेंगे चहल
पहले, कुटुंब अदालत ने इस अवधि को माफ करने से इनकार कर दिया था क्योंकि सहमति की शर्तों का केवल आंशिक अनुपालन किया गया था। अदालत के अनुसार, चहल को धनश्री को 4.75 करोड़ रुपये का भुगतान करना था, लेकिन उन्होंने केवल 2.37 करोड़ रुपये का भुगतान किया था। अदालत ने यह भी कहा था कि मध्यस्थता प्रयासों का केवल आंशिक पालन किया गया था।
हालांकि, उच्च न्यायालय ने बुधवार को यह निर्णय दिया कि सहमति की शर्तों का पूरा पालन किया गया है क्योंकि समझौते के अनुसार तलाक का आदेश मिलने के बाद ही गुजारा भत्ते की शेष राशि का भुगतान किया जाना था। इसके बाद उच्च न्यायालय ने छह महीने की अनिवार्य अवधि को माफ कर दिया और तलाक की प्रक्रिया को शीघ्र पूरा करने के निर्देश दिए।