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मोहन भागवत बोले – ‘विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला एक नया भारत खड़ा होकर रहेगा, मंदिर उसका ही प्रतीक’

मोहन भागवत बोले – ‘विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला एक नया भारत खड़ा होकर रहेगा, मंदिर उसका ही प्रतीक’

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अयोध्या, 22 जनवरी। अयोध्यापुरी स्थित राम मंदिर में सोमवार को श्री रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान पूरा होने के बाद मंदिर परिसर में ही आयोजित समारोह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने भी संबोधित किया।

RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में कहा, ‘आज 500 वर्षों बाद रामलला यहां लौटे हैं और जिनके प्रयासों से हम आज का यह स्वर्ण दिन देख रहे हैं, उन्हें हम कोटि-कोटि नमन करते हैं। इस युग में राम लला के यहां वापस आने का इतिहास जो कोई भी श्रवण करेगा, उसके सारे दुख-दर्द मिट जाएंगे, इतना इस इतिहास में सामर्थ्य है।’

पीएम के 11 दिन के अनुष्ठान को बताया तप

मोहन भागवत ने कहा, ‘आज अयोध्या में रामलला के साथ भारत का गर्व लौटकर आया है। संपूर्ण विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला भारत खड़ा होकर रहेगा। जोश की बातों में होश की बात करने का काम मुझे ही दिया जाता है। आज हमने सुना कि प्रधानमंत्री जी ने यहां आने से पहले कठोर तप रखा। जितना कठोर तप रखा जाना चाहिए था, उससे ज्यादा कठिन तप रखा। मेरा उनसे पुराना परिचय है। मैं जानता हूं, वे तपस्वी हैं ही। परंतु, वे अकेले तप कर रहे हैं, हम क्या करेंगे?’

पीएम मोदी ने तप किया, अब हमको भी तप करना है

उन्होंने कहा, ‘अयोध्या में रामलला आए, अयोध्या से बाहर क्यों गए थे? अयोध्या उस पुरी का नाम है, जिसमें कोई द्वंद नहीं, कोई कलह नहीं है। राम जी 14 वर्ष बाद वापस आए और कलह खत्म हुआ। रामलला के इस युग में आज के दिन फिर वापस आने का इतिहास जो श्रवण करेगा, उसका हर दुख मिटेगा। पीएम मोदी ने तप किया, अब हमको भी तप करना है।’

आपसी कलह को करना होगा खत्म

रामराज्य का जिक्र करते हुए डॉ. भागवत ने कहा, ‘रामराज्य के सामान्य नागरिकों का जो वर्णन है, हम भी इस भारत देश की संतानें हैं। हमें सारे कलह को विदाई देनी पड़ेगी, छोटे-छोटे कलह को लेकर लड़ाई करने की आदत छोड़नी होगी। भगवान धर्म के चार मूल्य हैं – सत्य, करुणा, शुचिता, अनुशासन। इन्हें अपनाना होगा। हम सबके लिए चलते हैं, सब हमारे हैं, इसलिए हम चल पाते हैं। आपस में समन्वय रखकर चलना सत्य का आचरण है। करुणा का अर्थ है सबके प्रति करुणा, सेवा करें। दोनों हाथों से कमाएं, अपने लिए जरूरत के मुताबिक रखें, बाकी समाज को वापस कर दें। शुचिता पर चलना है यानी पवित्रता होनी चाहिए। पवित्रता के लिए संयम चाहिए। अपनी सब बातें सही होंगी, ऐसा ठीक नहीं है। अपने को संयम में रखेंगे तो सब ठीक होगा। और अनुशासन का पालन करना अपने समाज, कुटुंब, समाज में अनुशासन से सहना है।’

भागवत ने कहा, ‘सब मिलकर चलेंगे और अपने देश को विश्व गुरु बनाएंगे। पांच सौ वर्ष के संघर्ष के बाद ये घड़ी आई है। आज के दिन जिन्होंने संघर्ष किया, उन्हें याद करने का दिन है। उनका ये व्रत हमें आगे लेकर जाना है। जिस धर्मस्थापना को लेकर रामलला आए हैं, उनका आदेश सिर पर लेकर हम यहां से जाएं।’

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