महर्षि वाल्मीकी जयंती आज, पीएम मोदी और सीएम योगी ने देशवाशियों को दीं शुभकामनाएं, जानिए उनके जीवन से जुड़ी खास बातें
नई दिल्ली। भगवान वाल्मीकि जी का पवित्र प्रगट दिवस हर वर्ष शरद पूर्णिमा को पूरे विश्व में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान वाल्मीकि जी की जंयती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने देशवासियो को शुभकामनाएं दीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक वीडियो संदेश पोस्ट करते हुए कहा, ”आप सभी को वाल्मीकि जयंती की बहुत-बहुत शुभकामनाएं”।
योगी आदित्यनाथ
उत्तर प्रदेश के मुखंयमंत्री योगी आदित्यनाथ सोशल मीडिया मंच एक्स पर ट्वीट कर लिखा, ‘आदिकवि’ महर्षि वाल्मीकि जी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन! प्रभु श्री राम के आदर्शों एवं उनके पावन चरित्र से वाल्मीकि जी ने मानव सभ्यता का साक्षात्कार कराया था। उनके द्वारा रचित महाग्रंथ ‘रामायण’ धर्म एवं सत्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करता है।
राहुल गांधी
राहुल गांधी ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि ने अपने महान ग्रंथ के माध्यम से समाज को धर्म, सत्य और नैतिकता का संदेश दिया है, जो आज भी प्रासंगिक है। उनके आदर्श और शिक्षाएं हमें हमेशा सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देती हैं। वाल्मीकि जयंती के इस पावन अवसर पर राहुल गांधी ने देशवासियों को बधाई दी और समाज में शांति और सद्भाव की कामना की।
वैसे उत्तर भारत में शरद पूर्णिमा को एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है।इसकी एक वजह भी है कि इस दिन चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है। इसी मान्यता के कारण घर की छत पर खीर रखी जाती है, चंद्रमा की किरणों से इसे ऊर्जा मिलती है और सुबह खाई जाती है। शरद पूर्णिमा को ‘कोजागरी पूर्णिमा’ भी कहा जाता है।
इस दिन पूरे विश्व में भगवान वाल्मीकि जी का प्रगट-दिवस बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। जैसे सूर्य की रोशनी से पूरा विश्व जाग्रत होता है, ठीक उसी प्रकार भगवान वाल्मीकि के ‘ज्ञानामृत’ से पूरा ब्रह्मांड जाग्रत होकर तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करता है। भगवान ने अपने ज्ञानामृत को सूत्रों में बांधकर, जिसे हम ‘अनुष्टूप छंद’ के नाम से जानते हैं, सूत्रबंध ढंग से सुंदर कहानियों, आख्यानों, दृष्टांतों के द्वारा कठोर से आसान उदाहरणों द्वारा समझाया है। उनको केवल पढ़ने, सुनने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
संस्कृत भाषा का जन्म भगवान वाल्मीकि जी के मुख से निकले शब्दों से हुआ था। संस्कृत के व्यंजनों का पहला अक्षर ‘क’ का होना कोई संयोग नहीं, बल्कि क्रौन्च से ही भगवान वाल्मीकि ने करुणा भाव से लौकिक भाषा का निर्माण किया था। बात उस समय की है, जब एक दिन प्रभु वाल्मीकि अपने शिष्य ऋषि भारद्वाज के साथ तमसा नदी पर स्नान कर वापस आश्रम की ओर आ रहे थे, तब उन्होंने नदी के तट के पास एक निषाद को देखा, जिसने अपने तीर से क्रौन्च और क्रौन्ची जोड़े में से क्रौन्च (नर) को मार डाला। यह दृश्य देख कर उनके मुख से जो शब्द निकले वे इस प्रकार हैं :-
मा निषाद प्रतिष्ठाम् त्वमागम: शाश्वती क्षमा:। यतक्रौन्च मिथुनाद एकम् अवधी काममोहितम्।
इस श्लोक से ही संस्कृत भाषा का जन्म हुआ। आश्रम आकर प्रभु वाल्मीकि जी चैन से नहीं बैठे। उन्होंने देखा कि जीव कैसे अपने स्वार्थ के लिए एक-दूसरे जीव की हत्या कर देता है, जबकि प्रकृति ने एक-सी प्राणवायु सब जीवों को दी है। भगवान ने जीव को एक सूत्र में बांधने के लिए सिद्धांत बनाए और जीव को उसका पालन करने का उपदेश दिया। तभी से जीव इस संसार से मुक्ति अथवा मोक्ष की प्राप्ति कर रहा है।
ब्रह्म क्या है ?
भगवान वाल्मीकि ने सम्पूर्ण विश्व को सत्य पर चलने की शिक्षा दी है। उनके अनुसार सारी सृष्टि सत्य पर आधारित है। जगत में सत्य ही ईश्वर है। सत्य के आधार पर धर्म स्थित है। सत्य से बढ़कर कोई परमपद नहीं है। सत्य धर्म से अर्थ और सुखों की प्राप्ति होती है। सत्य रूपी धर्म में लगे लोगों को मृत्यु का भय नहीं होता। भगवान वाल्मीकि ने ब्रह्मांड का सृजन किया, पूरे विश्व में एक सर्वव्यापक एवं अटल सत्य है जिसको उन्होंने आत्मा, ब्रह्म, परमपद इत्यादि अनेक नामों से अभिहित किया है।
भगवान वाल्मीकि जी ने हमें शिक्षा दी है कि हम कैसे विचरण करते रहें, अपना जीवन कैसे व्यतीत करें और संसार में रहते हुए संसार से कैसे विरक्त होकर जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति प्राप्त करें। वह शिक्षा ब्रह्मज्ञान है। उस ब्रह्मज्ञान पर चलकर प्राणी जन्म-मरण के बंधन से छूटकर मोक्ष पा सकता है। जो व्यक्ति ‘ब्रह्मज्ञान’ प्राप्त कर लेता है, वह स्वयं भी ‘ब्रह्म स्वरूप’ हो जाता है। ब्रह्म की प्राप्ति कर लेने पर ‘अहम ब्रह्मास्मि’ की अनुभूति होती है। भगवान वाल्मीकि ब्रह्म में लीन रहते थे, तभी उनको ब्रह्मलीनो कहा जाता था।
आत्मा क्या है ?
प्रथम उन्होंने हमें ज्ञान दिया है कि आत्मा का कोई मूर्त रूप नहीं है, न ही उसकी कोई संज्ञा है, न ही दृष्टि का, न ही विचार का, आत्मा केवल अनुभूति का विषय है। न वह अस्त होती है, न उदित, न खड़ी होती, न बैठती है, न कहीं से आती है, न कहीं जाती है, वह यहां नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता। वह चिन्यय होने से यहां है। तुम में, मेरे में और समस्त लोगों में आत्मा विद्यमान है।
आत्मा का अनुसंधान
भगवान वाल्मीकि जी ने ग्रंथ ‘योगवशिष्ठ मोक्षोपाय’ में बताया है कि आत्मा का अनुसंधान ‘मन को समरस’ करके किया जा सकता है। मनुष्य जब तक अपने संकल्प-विकल्प नहीं छोड़ता, तब तक आत्मा का अनुसंधान असंभव है।
सृष्टि की रचना ?
इस जगत को उत्पन्न करने वाला मुख्य मन ही है। वह ही संसार रूपी विषवृक्ष को उत्पन्न करने वाली तंतु है। मन के तीन गुण- सत्व-रजस् एवं तमस् के कारण ही यह जगत है। इस जगत में कीट, पतंग रूपी सृष्टि को तमस् गुण, लोक व्यवहार रजस् गुण के कारण और धर्म, ज्ञान-परायणता सत्व गुण का परिणाम है। इस जगत में व्यक्ति स्वयं को परमतत्व से अलग मानता हुआ इसका कर्त्ता और हर्ता स्वीकार करता है तथा दुख-सुख का अनुभव करता हुआ जीवन व्यतीत करता है। जो मनुष्य इसका बारम्बार विचार करेगा, वह यदि महामूर्ख हो तो भी शांत पद को प्राप्त होगा।
योग क्या है ?
भगवान वाल्मीकि जी ने ‘योगवशिष्ठ मोक्षोपाय’ में आत्मा को परमात्मा से जोड़ने को योग बताया है। योग हमारी दिनचर्या को सही करने में मदद करता है। यह सिखाता है कि कैसे खाना-पीना, सोना-जागना, उठना-बैठना, मरना-जीना और सांसों पर नियंत्रण कर अपनी आयु को बढ़ाया जा सकता।