समान नागरिक संहिता पर नए सिरे से विचार कर रहा विधि आयोग, आमजन और धार्मिक संगठनों से मांगा सुझाव
नई दिल्ली, 14 जून। भारत के विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) पर नए सिरे से विचार-विमर्श शुरू कर दिया है। भारत के 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के बारे में जनता और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों से उनके विचार मांगे हैं।
मीडिया रिपोर्ट के हवाले से बुधवार के जारी एक बयान में कानून पैनल द्वारा कहा गया है कि भारत के 21वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर विषय की जांच की थी और 7 अक्टूबर, 2016 को एक प्रश्नावली के साथ अपनी अपील के माध्यम से सभी हितधारकों के विचारों का अनुरोध किया था।
21वें विधि आयोग का कार्यकाल वर्ष 2018 में समाप्त हो गया था। इसमें इस मुद्दे पर जांच की गई थी और यूसीसी के राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले पर दो अवसरों पर सभी हितधारकों के विचार मांगे थे। गौरतलब है कि आयोग को काफी प्रतिक्रियाएं मिलीं और 21वें विधि आयोग ने 31 अगस्त, 2018 को पारिवारिक कानून में सुधार पर परामर्श पत्र जारी किया।
कानून पैनल ने कहा कि चूंकि परामर्श पत्र जारी किए हुए तीन साल से अधिक समय बीत चुका है और विषय की प्रासंगिकता और महत्व को ध्यान में रखते हुए और इस विषय पर विभिन्न अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए, भारत के 22वें विधि आयोग ने पहल करना सही समझा है।
क्या है समान नागरिक संहिता?
गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता व्यक्तिगत कानूनों को पेश करने का प्रस्ताव करती है, जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होंगे। चाहे फिर वह किसी भी धर्म, लिंग, जाति से ही क्यों न हो। समान नागरिक संहिता अनिवार्य रूप से विवाह, तलाक, गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक सामान्य समूह को संदर्भित करती है।
भारत में वर्तमान में, विभिन्न समुदायों के व्यक्तिगत कानून बड़े पैमाने पर उनके धर्म द्वारा शासित होते हैं। हालांकि, यूनिफॉर्म सिविल कोड के आने से ये सभी धर्मों के लोगों पर समान रूप से लागू किया जाएगा।