ज्ञानपीठ से सम्मानित कश्मीर के प्रसिद्ध कवि प्रो. अब्दुल रहमान राही नहीं रहे, 98 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस
श्रीनगर, 9 जनवरी। जम्मू-कश्मीर के प्रसिद्ध कवि और आलोचक अब्दुल रहमान राही का सोमवार को 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वृद्धावस्था की कई बीमारियों से जूझ रहे प्रोफेसर रहमान राही लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे।
वर्ष 2007 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित अब्दुल रहमान राही को साल 1961 में कविता संग्रह ‘नवरोज़-ए-सबा’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था। इंतकाल के बाद राही को दोपहर दो बजे श्रीनगर के नौशहरा में आखिरी विदाई दी गई। इस गमगीन मौके पर कश्मीर के कई लेखको और शायरों के अलावा सियासी शख़्सियतों ने उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित किया।
वर्ष 2000 में पद्मश्री से सम्मानित किए गए थे प्रो. राही
प्रोफेसर अब्दुल रहमान राही को वर्ष 2000 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था। आप कश्मीर के पहले लेखक थे, जिन्हें कविता संग्रह ‘सियाह रूद जेरेन मंज़’ के लिए साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया था। प्रोफेसर राही ने सूफी संत बाबा फरीद की कविता को पंजाबी भाषा से कश्मीरी भाषा में अनुवादित भी किया था। वह वर्ष 2000 से साहित्य अकादमी के महत्तर सदस्य थे।
प्रोफेसर राही का जन्म छह मई, 1925 को श्रीनगर में हुआ था। आजादी के एक साल बाद यानी 1948 में बतौर क्लर्क उन्होंने लोकनिर्माण विभाग में नौकरी शुरू की। प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े रहने वाले राही साल 1953-55 तक दिल्ली से प्रकाशित होने वाले उर्दू दैनिक ‘आजकल’ के संपादक मंडल में रहे। साहित्य में उनके योगदान देखते हुए साल 1964 में उन्हें कश्मीर यूनिवर्सिटी में फ़ारसी विभाग बतौर लेक्चरर नियुक्त किया गया था।