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जांच रिपोर्ट में खुलासा : खांसी की दवाओं में जहरीले रसायन नहीं, स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को जारी की गाइडलाइन

जांच रिपोर्ट में खुलासा : खांसी की दवाओं में जहरीले रसायन नहीं, स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को जारी की गाइडलाइन

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नई दिल्ली, 3 अक्टूबर। मध्य प्रदेश व राजस्थान में पिछले कुछ दिनों के दौरान हुई 11 बच्चों की मौत की घटनाओं को खांसी की दवाओं के सेवन से जोड़ने वाली रिपोर्टों के बाद केंद्र और राज्य स्तर पर व्यापक जांच की गई। जांच के दौरान किसी भी नमूने में डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) या एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) नहीं पाया गया। ये दोनों तत्व गंभीर किडनी क्षति के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं।

दो साल से कम उम्र के बच्चों को न पिलाएं कफ सिरप

इसी क्रम में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय (DGHS) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को बच्चों में खांसी की दवाओं के तर्कसंगत उपयोग पर विशेष परामर्श जारी किया है। परामर्श में कहा गया है कि दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कफ और सर्दी की सिरप नहीं दी जानी चाहिए।

सरकार ने कहा, ‘दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खांसी और सर्दी की दवाएं नहीं दी जानी चाहिए। आमतौर पर पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए इनकी अनुशंसा नहीं की जाती है। किसी भी दवा के उपयोग के लिए सावधानीपूर्वक नैदानिक ​​मूल्यांकन, कड़ी निगरानी और उचित खुराक, न्यूनतम प्रभावी अवधि और कई दवाओं के संयोजन से बचने का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। इसके अलावा, डॉक्टरों द्वारा निर्धारित दवाओं के पालन के बारे में जनता को भी जागरूक किया जा सकता है।’

मध्य प्रदेश में  9 व राजस्थान में 2 बच्चों की मौत हुई है

उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में कथित रूप से प्रतिबंधित कफ सिरप पीने की वजह से कुल 11 बच्चों की मौत हो गई। इसमें से मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर नौ हो गई है।

बच्चों की मौत की घटनाओं के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देश पर राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC), राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (NIV) व केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) सहित विशेषज्ञ संस्थानों की संयुक्त टीम ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर खांसी की दवाओं (कफ सिरप) सहित कई नमूने एकत्र किए। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि किसी भी नमूने में डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) या एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) नहीं है। मध्य प्रदेश राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन (SFDA) ने भी अपने स्तर पर तीन नमूनों की जांच की और DEG/EG की अनुपस्थिति की पुष्टि की।

वहीं, NIV पुणे द्वारा किए गए परीक्षण में रक्त और CSF नमूनों की जांच में एक मामले में लेप्टोस्पायरोसिस संक्रमण सामने आया है। इसके साथ ही पानी, मच्छर वाहक और श्वसन संबंधी नमूनों की जांच भी जारी है, जिसमें NEERI, NIV पुणे और अन्य संस्थान शामिल हैं। एक बहु-विषयक टीम सभी संभावित कारणों की गहन जांच कर रही है।

इस बीच राजस्थान से आई रिपोर्टों पर भी स्पष्ट किया गया है कि वहां बच्चों की मौत से जुड़ा खांसी की दवा का उत्पाद प्रोपलीन ग्लाइकॉल रहित था और DEG/EG का संभावित स्रोत नहीं है। संबंधित दवा डेक्स्ट्रोमेथॉर्फन-आधारित फार्मूलेशन है, जिसका बच्चों में उपयोग अनुशंसित नहीं है।

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