फलस्तीन में भारत के प्रतिनिधि मुकुल आर्य की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत
नई दिल्ली, 7 मार्च। फलस्तीन में भारत के प्रतिनिध (राजदूत) मुकुल आर्य की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई है। आर्य रविवार को रमल्ला स्थित भारतीय दूतावास के अंदर ही मृत पाए गए।
वर्ष 2008 में ही भारतीय राजनयिक सेवा से जुड़ा देश के युवा राजनयिक मुकुल आर्य की मृत्यु के कारणों के बारे में तात्कालिक तौर पर कोई जानकारी नहीं मिली है। उन्होंने जून 2021 में फलस्तीन में कार्यभार संभाला था।
फलस्तीन से पहले आर्य अफगानिस्तान में भारतीय उच्च आयोग, रूस में भारतीय दूतावास और फ्रांस में यूनेस्को में भारत के स्थायी प्रतिनिधिमंडल में काम किया था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और सिंगापुर के ली कुआं यू स्कूल जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़ाई की थी।
विदेश मंत्री जयशंकर बोले – आर्य तेजस्वी और प्रतिभावान अधिकारी थे
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने मुकुल आर्य की मृत्यु के बारे में जानकारी देते हुए एक ट्वीट में उन्हें एक तेजस्वी और प्रतिभावान अधिकारी बताया। विदेश मंत्री ने ट्वीट किया, ‘ रमल्ला में भारत के प्रतिनिधि मुकुल आर्य के निधन के बारे में जानकर गहरा सदमा लगा। मैं उनके परिवार और प्रियजनों के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूं..ओम शांति।’
Deeply shocked to learn about the passing away of India’s Representative at Ramallah, Shri Mukul Arya.
He was a bright and talented officer with so much before him. My heart goes out to his family and loved ones.
Om Shanti.— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) March 6, 2022
फलस्तीन सरकार ने आर्य की मृत्यु पर शोक जताया
उधर फलस्तीन की सरकार ने जारी एक बयान में आर्य की मृत्यु पर विस्मय और दुख व्यक्त किया। बयान में यह भी कहा गया कि फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास और प्रधानमंत्री मोहम्मद शतयेह ने सभी संबंधित विभागों को आर्या की मृत्यु के कारण के बारे में जानकारी हासिल करने के आदेश दिए हैं।
फलस्तीन में भारत का पूर्ण दूतावास नहीं है
उल्लेखनीय है कि फलस्तीन में भारत का पूर्ण दूतावास नहीं है। फलस्तीन में भारतीय मिशन को भारत का प्रतिनिधि कार्यालय और वहां का कार्यभार संभालने वाले भारतीय अधिकारी को भारत का प्रतिनिधि कहा जाता है।
भारत ने यह कार्यालय 1996 में गजा में स्थापित किया था। 2003 में इसे गजा से रमल्ला स्थानांतरित कर दिया गया। फलस्तीन का समर्थन भारत की विदेश नीति का एक अहम हिस्सा रहा है। 1974 में भारत फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) को फलस्तीनी लोगों के एकमात्र और जायज प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाले पहला गैर-अरब देश बन गया था।