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‘मन की बात’ के 127वें संस्करण में बोले पीएम मोदी- छठ महापर्व संस्कृति, प्रकृति और सामाजिक एकता का प्रतिबिंब

‘मन की बात’ के 127वें संस्करण में बोले पीएम मोदी- छठ महापर्व संस्कृति, प्रकृति और सामाजिक एकता का प्रतिबिंब

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नई दिल्ली, 26 अक्टूबर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने छठ को हर्ष, उल्लास और देश की खुशहाली का महापर्व बताते हुए कहा है कि इसमें हमारी संस्कृति, प्रकृति और सामाजिक एकता की गहराई प्रतिबिंबित होती है। मोदी ने रविवार को आकाशवाणी से प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 127वें संस्करण में महापर्व छठ को देश की संस्कृति, प्रकृति और समाज की गहरी एकता का प्रतिबिंब बताते हुए देश की खुशहाली के लिए छठी मैया को प्रणाम किया। श्री मोदी ने बिहार, झारखंड और पूर्वांचल के लोगों समेत समस्त देशवासियों को छठ महापर्व की शुभकामनाएं दी।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि छठ के घाटों पर समाज का हर वर्ग एक साथ खड़ा होता है। यह दृश्य भारत की सामाजिक एकता का सबसे सुंदर उदाहरण है। मोदी ने देशवासियों से अपील करते हुए कहा कि एक अनोखे अनुभव के लिए छठ उत्सव में जरूर हिस्सा लें, चाहे आप देश और दुनिया के किसी भी कोने में हों। मोदी ने कहा कि पूरे देश में इस समय त्योहारों का उल्लास है। हम सभी ने कुछ दिन पहले दीपावली मनाई है और अभी बड़ी संख्या में लोग छठ पूजा में व्यस्त हैं। घरों में ठेकुआ बनाया जा रहा है। जगह-जगह घाट सज रहे हैं। बाजारों में रौनक है। हर तरफ श्रद्धा, अपनापन और परंपरा का संगम दिख रहा है। छठ का व्रत रखने वाली महिलाएं जिस समर्पण और निष्ठा से इस पर्व की तैयारी करती हैं वो अपने आप में बहुत प्रेरणादायक है।

मोदी ने कहा ” त्योहारों के इस अवसर पर मैंने आप सभी के नाम एक पत्र लिखकर अपनी भावनाएं साझा की। मैंने पत्र में देश की उन उपलब्धियों के बारे में बताया था जिससे इस बार त्योहारों की रौनक पहले से ज्यादा हो गई है। मेरी चिट्ठी के जवाब में मुझे देश के अनेक नागरिकों ने अपने संदेश भेजे हैं।” प्रधानमंत्री ने कहा कि वाकई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने हर भारतीय को गर्व से भर दिया है। इस बार उन इलाकों में भी खुशियों के दीप जलाए गए जहाँ कभी माओवादी आतंक का अंधेरा छाया रहता था। लोग उस माओवादी आतंक का जड़ से खात्मा चाहते हैं जिसने उनके बच्चों का भविष्य संकट में डाल दिया था। प्रधानमंत्री ने कहा ” इस बार त्यौहारों पर बचत उत्सव को लेकर भी लोगों में बहुत उत्साह है। उन्होंने कहा कि इस बार त्योहारों में एक और सुखद बात देखने को मिली। बाजारों में स्वदेशी सामानों की खरीदारी जबरदस्त तरीके से बढ़ी है। लोगों ने मुझे जो संदेश भेजे हैं, उसमें बताया है कि इस बार उन्होंने किन स्वदेशी चीजों की खरीदारी की है।”

‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान को और आगे बढ़ाकर लाना है बदलाव

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि ‘मां के नाम एक पेड़’ लगाने जैसे कार्यक्रमों से जीवन में बदलाव आता है इसलिए इस तरह के अभियान को और आगे बढ़ाते हुए दूसरे क्षेत्रों में भी इसी तरह के अन्य प्रेरणादायक बदलाव लाने की जरूरत है। मोदी ने कहा कि इसी अभियान का परिणाम है कि गुजरात में मैंग्रोव के जंगल विकसित हो रहे हैं और बेंगलुरु में झीलों को नया जीवन देने का अभियान चल रहा है तथा अंबिकापुर में गार्बेज कैफे संचालित हो रहे हैं जो बदलाव के नये उदाहरण बन रहे हैं।

उन्होंने मैंग्रोव लगाने के अभियान का जिक्र करते हुए कहा कि गुजरात के वन विभाग ने इसके महत्व को समझते हुए खास मुहिम चलाई है। पांच साल पहले वन विभाग की टीमों ने अहमदाबाद के नजदीक धोलेरा में मैंग्रोव लगाने का काम शुरू किया और आज, धोलेरा तट पर साढ़े तीन हजार हेक्टेयर में मैंग्रोव फैल चुके हैं। इनका असर आज पूरे क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। वहाँ के इकोसिस्टम में डॉलफिन की संख्या बढ़ गयी है। केंकड़े और दूसरे जलीय जीव भी पहले से ज्यादा हो गए हैं। यही नहीं, अब यहाँ प्रवासी पक्षी भी काफी संख्या में आ रहे हैं। इससे वहाँ के पर्यावरण पर अच्छा प्रभाव तो पड़ा ही है, धोलेरा के मछली पालकों को भी फायदा हो रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि धोलेरा के अलावा गुजरात के कच्छ में भी इन दिनों मैंग्रोव का पौधरोपण बहुत जोरों पर हो रहा है, वहाँ कोरी क्रीक में मैंग्रोव लर्निंग सेंटर भी बनाया गया है। उन्होंने कहा कि पेड़- पौधों और वृक्षों की यही तो खासियत होती है। जगह चाहे कोई भी हो, वो हर जीव मात्र की बेहतरी के लिए काम आते हैं। इसीलिए तो हमारे ग्रन्थों में कहा गया है -धन्या महीरूहा येभ्यो, निराशां यान्ति नार्थिनः। अर्थात्, वो वृक्ष और वनस्पतियाँ धन्य हैं, जो किसी को भी निराश नहीं करते। हमें भी चाहिए, हम जिस भी इलाके में रहते हैं, पेड़ अवश्य लगाएं। ‘एक पेड़ माँ के नाम’ के अभियान को हमें और आगे बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि इसी तरह के बदलाव स्वच्छता और स्वच्छता के प्रयास में देखने को मिल रहे हैं।

उन्होंने कहा “मैं आपसे देश के तीन अलग-अलग शहरों की ऐसी गाथाएं साझा करना चाहता हूँ जो बहुत प्रेरणादायक हैं। छतीसगढ़ के अम्बिकापुर में शहर से प्लास्टिक कचरा साफ करने के लिए एक अनोखी पहल की गई है। अम्बिकापुर में गार्बेज कैफ़े चलाए जा रहे हैं। ये ऐसे कैफ़े हैं, जहाँ प्लास्टिक कचरा लेकर जाने पर भरपेट खाना खिलाया जाता है। अगर कोई व्यक्ति एक किलो प्लास्टिक लेकर जाए उसे दोपहर या रात का खाना मिलता है और कोई आधा किलो प्लास्टिक ले जाए तो नाश्ता मिल जाता है। ये कैफ़े अम्बिकापुर म्युनिसिपल कॉरपोरेशन चलाता है।

इसी तरह का कमाल बेंगलुरु में इंजीनियर कपिल शर्मा जी ने किया है। बेंगलुरू को झीलों का शहर कहा जाता है और कपिल जी ने यहां झीलों को नया जीवन देने का अभियान शुरू किया है। कपिल जी की टीम ने बेंगलुरु और आसपास के इलाकों में 40 कुंओं और छह झीलों को फिर से जिंदा कर दिया है। खास बात तो ये है कि उन्होंने अपने मिशन में कॉरपोरेट और स्थानीय लोगों को भी जोड़ा है। उनकी संस्था पेड़ लगाने के अभियान से भी जुड़ी है।”

ओडिशा का गौरव है कोरापुट कॉफी: मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरापुट कॉफी को ओडिशा का गौरव बताते हुए इसके स्वाद और गुणवत्ता की प्रशंसा की है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा ” आप सभी चाय के साथ मेरे जुड़ाव के बारे में तो जानते हैं लेकिन आज ‘मन की बात’ में कॉफी पर चर्चा करूंगा। आपको याद होगा कि बीते साल हमने ‘मन की बात’ में अराकू कॉफी पर बात की थी। कुछ समय पहले ओडिशा के कई लोगों ने मुझसे कोरापुट कॉफी को लेकर भी अपनी भावनाएं साझा की। उन्होंने मुझे पत्र लिखकर कहा कि ‘मन की बात’ में कोरापुट कॉफी पर भी चर्चा हो।”

मोदी ने कहा कि कोरापुट कॉफी का स्वाद गजब होता है, इतना ही नहीं कॉफी की खेती भी लोगों को फायदा पहुंचा रही है| कोरापुट में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपने जुनून के चलते कॉफी की खेती कर रहे हैं। कॉरपोरेट जगत में नौकरी करने वाले कई लोग भी कोरापुट कॉफी की खेती कर रहे हैं। ऐसी कई महिलाएं भी हैं, जिनके जीवन में कॉफी की खेती से सुखद बदलाव हुआ है । कॉफी से उन्हें सम्मान और समृद्धि, दोनों हासिल हुई है । श्री मोदी ने कहा, “कोरापुट कॉफी अत्यंत सुस्वादु। एहा ओडिशार गौरव।”

मोदी ने कहा ” दुनिया-भर में भारत की कॉफी बहुत लोकप्रिय हो रही है। चाहे वह कर्नाटक में चिकमंगलुरु, कुर्ग और हासन हो। तमिलनाडु में पुलनी, शेवरॉय, नीलगिरि और अन्नामलाई के इलाके हों, कर्नाटक-तमिलनाडु सीमा पर बिलिगिरि क्षेत्र हो या फिर केरल में वायनाड, त्रावणकोर और मालाबार के इलाके – भारत की कॉफी की विभिन्नता देखते ही बनती है। मुझे बताया गया है कि हमारा पूर्वोत्तर क्षेत्र भी कॉफी की खेती में आगे बढ़ रहा है। इससे भारतीय कॉफी की पहचान दुनिया-भर में और मजबूत हो रही है।इसी वजह से भारत की कॉफी को दुनिया भर में पसंद किया जाता है।

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