मदनलाल ढींगरा : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अप्रतिम क्रांतिकारी
जयंती भड़ेसिया
अहमदाबाद: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अप्रतिम क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा का जन्म 18 सितम्बर, 1883 को अमृतसर में हुआ था। पिता और भाई ख्यातिनाम डॉक्टर थे, जिन्होंने मदनलाल को बीए की डिग्री मिलने के बाद लंदन भेज दिया। वहां उन्हें क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित ‘इंडिया हाउस’ में एक कमरा मिला। उन दिनों विनायक दामोदर सावरकर भी वहां थे।
वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की आधी सदी बीतने का जश्न 10 मई, 1908 को इंडिया हाउस में मनाया गया, जिसमें शहीद नायकों को श्रद्धांजलि दी गई और सभी को स्वतंत्रता के बैज भेंट किए गए। उस दौरान सावरकर जी के भाषण ने मदनलाल के दिमाग में हलचल पैदा कर दी।
मदनलाल जब एक बैज के साथ कॉलेज गए तो अंग्रेज छात्रों ने लड़ाई शुरू कर दी। बस फिर क्या था, ढींगरा के मन में बदले की आग धधक उठी। उन्होंने वापस आकर सब कुछ सावरकर जी को बताया। उन्होंने पूछा, क्या आप कुछ परेशानी झेल सकते हैं। मदनलाल ने अपना हाथ मेज पर रख दिया। सावरकर के हाथ में एक सूजा था। उन्होंने उसे मदनलाल के हाथ पर रख दिया। सूजा एक पल में पार हो गया, लेकिन मदनलाल ने उफ तक नहीं किया। सावरकर ने मदनलाल को गले लगा लिया।
सावरकर जी की योजना के तहत मदनलाल ने ‘इंडिया हाउस’ छोड़ दिया और एक अंग्रेज परिवार के साथ जाकर रहने लगे। अब उन्होंने अंग्रेजों से अपनी दोस्ती बढ़ानी शुरू की, लेकिन अंदरखाने वह सावरकर जी के साथ हथियारों के संग्रह, उनके अभ्यास और भारत में हथियार भेजने में लगे हुए थे।
विलियम हट कर्जन वायली ब्रिटेन में भारत के सचिव के सहायक थे। वह विदेश में चल रही भारतीय स्वतंत्रता गतिविधियों को कुचलने में जुटे रहते थे। इसी दौरान मदनलाल को उनकी हत्या की जिम्मेदारी सौंप दी गई। इसी क्रम में मदनलाल ने एक कोल्ट रिवाल्वर और एक फ्रांसीसी पिस्तौल खरीदी। वह अंग्रेज समर्थक संगठन इंडियन नेशनल एसोसिएशन’ के सदस्य बन गए।
कर्जन वायली जुलाई,1909 में संगठन की सालगिरह पर मुख्य अतिथि थे। मदनलाल ने भी सूट और टाई पहन रखी थी। वह मंच के सामने जाकर बैठ गए। उनकी जेब में पिस्तौल, रिवाल्वर और दो चाकू थे। जैसे ही कार्यक्रम समाप्त हुआ, मदनलाल मंच के पास गए और कर्जन वायली के सीने और चेहरे पर गोलियां दागीं। कर्जन की तत्काल मौत हो गई। मदनलाल को वहीं पकड़ लिया गया।
5 जुलाई को इस हत्या की निंदा करने के लिए एक सभा हुई, लेकिन सावरकर ने निंदा प्रस्ताव पारित करने की अनुमति नहीं दी। उन्हें देखकर लोग डर के मारे भाग गए।
मदनलाल के खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ। मदनलाल ने कहा – ‘मैंने जो किया, बिल्कुल सही किया। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि मुझे भारत में फिर से जन्म लेना चाहिए।’ उन्होंने एक लिखित बयान भी दिया। लेकिन सरकार ने उसे वितरित नहीं किया। सावरकर के पास भी उसकी एक प्रति थी, जिसे उन्होंने प्रसारित कर दी। इससे दुनियाभर में ब्रिटेन की थू-थू हुई।
अंततः 17 अगस्त, 1909 को पेंटोनविला जेल में मदनलाल ढींगरा भारत माता की जय कहते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए। इंग्लैंड में रहने वाले भारतीय इतने प्रभावित हुए कि उस दिन सभी ने उपवास करके अपने नायक को श्रद्धांजलि दी। भारत माता के ऐसे क्रांतिकारी सपूत को शत् शत् नमन!