
नई दिल्ली, 20 जून। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने मंगलवार को पूर्वानुमान व्यक्त किया कि भारत के रुके हुए मॉनसून के अगले तीन से चार दिनों में गति पकड़ने की संभावना है और यह दक्षिणी, मध्य और पश्चिमी राज्यों में चावल, सोयाबीन, कपास और गन्ना उत्पादक क्षेत्र को कवर कर सकता है।
गौरतलब है कि मॉनसून खेतों को पानी देने और जलाशयों और जलभृतों को रिचार्ज करने के लिए आवश्यक लगभग 70 प्रतिशत वर्षा प्रदान करता है। इससे भीषण गर्मी से भी राहत मिलती है।
चक्रवात बिपरजॉय के बनने से मॉनसून की शुरुआत में देरी
आमतौर पर भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट पर स्थित केरल राज्य में एक जून के आसपास बारिश होती है और जून के मध्य तक देश के लगभग आधे हिस्से में बारिश हो जाती है। इस वर्ष अरब सागर में गंभीर चक्रवात बिपरजॉय के बनने से मॉनसून की शुरुआत में देरी हुई और इसकी प्रगति देश के एक तिहाई हिस्से तक ही सीमित रही।
मॉनसून की मजबूती के लिए परिस्थितियां अनुकूल होती जा रहीं
इस बीच आईएमडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘मॉनसून की मजबूती के लिए परिस्थितियां अनुकूल होती जा रही हैं। यह इस सप्ताह के अंत से देश के मध्य, पश्चिमी और उत्तरी भागों में तेजी से आगे बढ़ेगा।’ कपास, सोयाबीन और दालों की खेती मुख्य रूप से देश के मध्य भागों में की जाती है, जो वनस्पति तेलों और दालों का सबसे बड़ा आयातक और शीर्ष कपास उत्पादक है।
जून में अब तक सामान्य से 33 प्रतिशत कम बारिश हुई
जून में अब तक भारत में सामान्य से 33 प्रतिशत कम बारिश हुई है, हालांकि कुछ राज्यों में यह कमी 95 प्रतिशत तक है। आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने कहा, ‘अभी हमारे पास जो जानकारी है, उसके आधार पर ऐसा लगता है कि इस सप्ताह मॉनसून की बारिश अच्छी होगी।’
एल नीनो के बावजूद औसत वर्षा की भविष्यवाणी
आईएमडी ने जून के लिए औसत से कम बारिश की भविष्यवाणी की है, मॉनसून के जुलाई, अगस्त और सितंबर में बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, पूरे चार महीने के मौसम के लिए आईएमडी ने संभावित एल नीनो मौसम की घटना के गठन के बावजूद औसत वर्षा की भविष्यवाणी की है।
एक मजबूत एल नीनो दक्षिण पूर्व एशिया, भारत और ऑस्ट्रेलिया में गंभीर सूखे का कारण बन सकता है जबकि दुनिया के अन्य हिस्सों जैसे यूएस मिडवेस्ट और ब्राजील को बारिश से तरबतर कर सकता है। एक मजबूत एल नीनो के उद्भव ने 2014 और 2015 में एक सदी में केवल चौथी बार लगातार सूखे को जन्म दिया, जिसने भारतीय किसानों को अत्यधिक गरीबी में धकेल दिया था।