गृह मंत्री अमित शाह बोले – ‘कश्मीर घाटी से आतंकवाद का तंत्र खत्म करने के बाद जो खोया है, उसे वापस लेकर रहेंगे’
नई दिल्ली, 2 जनवरी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कश्मीर को भारत और उसकी आत्मा का अभिन्न अंग करार देते हुए कहा है कि पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने न केवल कश्मीर घाटी से आतंकवाद के पारिस्थितिकी तंत्र को खत्म किया है, बल्कि जो खोया है, उसे वापस पाने के लिए वह दृढ़ संकल्पित है।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की कहानी पर आधारित पुस्तक का विमोचन किया
अमित शाह ने गुरुवार को यहां ‘जम्मू कश्मीर और लद्दाख : थ्रू द एजेस – ए विजुअल नैरेटिव ऑफ कॉन्टिन्यूटीज एंड लिंकेज’ नामक पुस्तक के विमोचन अवसर पर पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गए क्षेत्र और क्षेत्र के सांस्कृतिक गौरव का परोक्ष संदर्भ देते हुए यह बात कही। रघुवेंद्र तंवर द्वारा सम्पादित भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद की यह पुस्तक जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की कहानी पेश करती है।
आज नई दिल्ली में 'जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख: सातत्य और संबद्धता का ऐतिहासिक वृत्तांत' पुस्तक का विमोचन और प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
जम्मू-कश्मीर की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों को तथ्यों और प्रमाणों के साथ प्रस्तुत करने वाली यह पुस्तक देश के युवाओं और शोधकर्ताओं के… pic.twitter.com/TRBMnsDeDO
— Amit Shah (@AmitShah) January 2, 2025
‘हम जल्द ही कश्मीर को अपना सांस्कृतिक गौरव वापस पाते देखेंगे‘
शाह ने कहा, ‘कश्मीर हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है, आज भी है और भविष्य में भी रहेगा। हम जल्द ही कश्मीर को अपना सांस्कृतिक गौरव वापस पाते देखेंगे।’ उन्होंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के एक कथन को याद करते हुए कहा, ‘जम्मू और कश्मीर न केवल भारत का हिस्सा है, बल्कि देश की आत्मा का अभिन्न अंग है।’
उन्होंने कहा, ‘इस पुस्तक ने साबित कर दिया है कि कश्मीर और लद्दाख भी हमारी संस्कृति और विरासत का अभिन्न अंग हैं। अनुच्छेद 370, जो कश्मीर को राष्ट्र से अलग करने का एक प्रयास था, उसे भी हटा दिया गया। संविधान सभा में बहुमत नहीं चाहता था कि अनुच्छेद 370 संविधान का हिस्सा बने। हालांकि यह एक हिस्सा बन गया। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने जब यह एक हिस्सा बन गया, तो महसूस किया कि इसे एक अस्थायी प्रावधान के रूप में लिखना आवश्यक था।’
अनुच्छेद 370 की समाप्ति से ही शुरू हुआ कश्मीर के विकास का नया अध्याय
गृह मंत्री शाह ने कहा, ‘जो कृत्रिम है, जो प्राकृतिक या जैविक नहीं है, उसका अस्तित्व लंबे समय तक नहीं रहता। यह पीएम मोदी के दृढ़ संकल्प के साथ ही था कि पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया गया। इसने हमारे स्वतंत्रता के बाद के इतिहास के एक कलंकित अध्याय को समाप्त कर दिया। वहां से शेष भारत के साथ-साथ कश्मीर के विकास का एक नया अध्याय शुरू हुआ।’
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के इतिहास, संस्कृति और महत्त्व को दर्शाती ‘जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख: सातत्य और संबद्धता का ऐतिहासिक वृत्तांत’ पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम से लाइव…
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कश्मीर पर सरकार के फोकस पर प्रकाश डालते हुए गृह मंत्री शाह ने कहा – ‘हमने न केवल आतंकवाद पर नियंत्रण पाया है, बल्कि हम इसे रोकने में भी सफल रहे हैं। नरेंद्र मोदी सरकार ने घाटी से आतंकवाद के पारिस्थितिकी तंत्र को खत्म करने का भी काम किया है। और यह सब इस भूमि के लिए हुआ है, जिसने देश और दुनिया की सभ्यताओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कश्मीर के विद्वानों ने हमारे देश की भाषाओं, व्याकरण और ज्ञान के विभिन्न रूपों को समृद्ध किया है।’
कश्मीर घाटी का हालिया उपलब्धियों की चर्चा की
कश्मीर घाटी में बीते कुछ वर्षों की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए शाह ने कहा, ‘2024 में जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की कोई घटना नहीं हुई है। 25,000 से अधिक पंचायत सदस्य, सरपंच, तहसील पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य चुनाव जीतकर आए हैं और अब अपने गांव, तहसील और जिले चला रहे हैं। जमीनी स्तर पर पंचायती राज और लोकतंत्र मजबूत हुआ है। पिछले 33 वर्षों में सबसे अधिक मतदान हाल ही में दर्ज किया गया।’
रघुवेंद्र तंवर की पुस्तक का जिक्र करते हुए शाह ने कहा कि लगभग 3,000 वर्ष पुराने ग्रंथों को स्कैन किया गया और सम्पादक ने पुस्तक में कश्मीर के ऐतिहासिक संदर्भ को उजागर किया। उन्होंने कहा कि मंदिर के खंडहर और चित्रों में परिलक्षित संस्कृति और भारत से अफगानिस्तान और पश्चिमी एशिया की ओर बौद्ध धर्म की यात्रा भी पुस्तक में दर्ज है। यह भी पुष्टि करता है कि कश्मीर हमेशा से भारत का हिस्सा रहा है। हमलावरों द्वारा क्षतिग्रस्त मंदिरों की तस्वीरों का उपयोग, कश्मीर में संस्कृत का उपयोग, डोगरा राजवंश का प्रगतिशील शासन, महाराजा रणजीत सिंह की वीरता और 1947 के बाद की गई गलतियों और उनके सुधारों ने पुस्तक में कश्मीर के 3,000 साल के इतिहास को प्रस्तुत किया है।
शाह ने कहा, ‘इतिहास को लुटियंस दिल्ली से जिमखाना क्लब या दरीबा कलां से बल्लीमारान तक सीमित या दर्ज नहीं किया जा सकता है। इतिहास को लोगों के साथ घुलने-मिलने, लोगों की संस्कृति और भाषा को समझने के माध्यम से समझना चाहिए।’ उन्होंने इतिहासकारों के 150 वर्षों के उस दौर की आलोचना की, जिसमें उन्होंने बहुत ही संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाया था।