गुजरात हाई कोर्ट ने खारिज किया पीएम मोदी की डिग्री दिखाने का आदेश, सीएम अरविंद केजरीवाल पर जुर्माना
नई दिल्ली, 31 मार्च। गुजरात हाई कोर्ट ने पीएम नरेंद्र मोदी की एमए की डिग्री पेश किए जाने के केंद्रीय सूचना आयोग का आदेश का खारिज कर दिया है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि पीएमओ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पोस्ट ग्रैजुएट डिग्री दिखाने की जरूरत नहीं है। उच्च न्यायालय की जस्टिस बीरेन वैष्णव की एकल बेंच ने केंद्रीय सूचना आयोग के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें पीएमओ के सूचना अधिकारी के अलावा गुजरात यूनिवर्सिटी और दिल्ली यूनिवर्सिटी को आदेश जारी किया गया था कि वे पीएम मोदी की ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री दिखाएं।
इसके साथ ही अदालत ने सीएम अरविंद केजरीवाल पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है, जिन्होंने डिग्री दिखाए जाने की मांग की थी। केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश के खिलाफ गुजरात यूनिवर्सिटी ने हाई कोर्ट का रुख किया था, जिस पर यह फैसला आया है।
पीएम मोदी के मुताबिक उन्होंने 1978 में गुजरात यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरा किया था और फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी से 1983 में पीजी किया था। पिछले महीने इस मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यूनिवर्सिटी का पक्ष रखते हुए कहा कि इस मामले में छिपाने के लिए कुछ नहीं है। लेकिन यूनिवर्सिटी पर जानकारी देने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता।
कानूनी मामलों की कवरेज करने वाली वेबसाइट बार एंड बेंच के अनुसार सुनवाई के दौरान एसजी तुषार मेहता ने कहा, ‘लोकतंत्र में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पद पर बैठा व्यक्ति डॉक्टरेट है या फिर अशिक्षित है। इसके अलावा इस मामले में जनहित से जुड़ी कोई बात नहीं है। यहां तक कि इससे संबंधित व्यक्ति की निजता प्रभावित होती है।’ मेहता ने कहा कि जो जानकारी मांगी गई है, वह ऐसी नहीं है, जिसके बारे में बताना पीएम का पब्लिक फिगर के तौर पर जरूरी हो।
सॉलिसिटर जनरल बोले – बचकाना मांग के लिए नहीं दे सकते जानकारी
तुषार मेहता ने कहा कि किसी की बचकाना मांग को पूरा करने के लिए करने के लिए किसी को भी सूचना देने के लिए नहीं कहा जा सकता। यह गैर-जिम्मेदार जिज्ञासा है। उन्होंने कहा कि जो जानकारी मांगी गई है, उसका पीएम नरेंद्र मोदी के कामकाज से कोई लेना देना नहीं है। अदालत में सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि आरटीआई एक्ट के मुताबिक वही जानकारी मांगी जा सकती है, जो सार्वननिक गतिविधि से जुड़ी हो और जिसके बारे में जानना जनहित में जरूरी हो।