नई दिल्ली, 3 फरवरी। कांग्रेस ने शनिवार को आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को खत्म करने में लगे हुए हैं। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि भाजपा ने पारदर्शिता का बहाना बनाकर कांग्रेस सरकार में शुरू की गई आधार तकनीक को गरीबों के खिलाफ एक हथियार में बदल दिया है।
रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया, “मनरेगा 2004 के लोकसभा चुनाव के लिए हमारे घोषणापत्र के मुख्य वादों में से एक था। हमने एक साल के भीतर ही अपना यह वादा पूरा करते हुए 2005 में कानून पारित किया और 2006 के शुरुआत में इसे लागू किया।” उन्होंने कहा कि यह योजना ग्रामीण भारत के लिए परिवर्तनकारी साबित हुई है।
कांग्रेस महासचिव ने कहा, “पिछले 18 वर्षों के अध्ययन से पता चलता है कि इससे ग्रामीण आय में वृद्धि हुई है, ग़रीबी और भुखमरी में कमी आई है और यह महिलाओं और एससी/एसटी/ओबीसी के श्रमिकों के लिए सबसे ज़्यादा लाभदायक साबित हुआ है।” रमेश के अनुसार, मनरेगा से श्रमिकों को सम्मान मिलता है क्योंकि इसके तहत रोज़गार अधिकार के रूप में मिलता है, न कि ‘रेवड़ी’ के रूप में, जैसा कि प्रधानमंत्री बोला करते हैं।
उन्होंने आरोप लगाया, “नरेन्द्र मोदी का मनरेगा श्रमिकों का अपमान करने का एक लंबा ट्रैक रिकॉर्ड है। वह कहते हैं कि इससे सिर्फ़ ग़रीबों से गड्ढा खुदवाया जाता है। शायद उन्हें इस बात का एहसास नहीं है कि अपनी मेहनत से मनरेगा श्रमिक भारत के विकास में योगदान दे रहे हैं – वे सिंचाई टैंक, सड़क, नहर, जंगल, बांध और भी बहुत कुछ बना रहे हैं।”
उन्होंने कहा, “2015 में, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वह मनरेगा को कांग्रेस की विफलताओं के ‘जीवित स्मारक’ के रूप में जीवित रखेंगे। लेकिन कोविड लॉकडाउन के दौरान उन्हें इसकी कीमत समझ आई होगी, जब मनरेगा ने एक लाख करोड़ से अधिक की आय के साथ पूरे भारत में करोड़ों श्रमिकों को अपनी जीविका चलाने में मदद किया।”
रमेश ने दावा किया कि प्रधानमंत्री को एक महामारी के बाद यह एहसास हुआ कि मनरेगा ग्रामीण भारत को फसल के नुक़सान और आर्थिक संकट जैसी आपात स्थितियों के ख़िलाफ़ ‘बैकअप’ प्रदान करता है। उन्होंने कहा, “यह पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री को संप्रग की योजनाओं के महत्व का एहसास हुआ है।
लॉकडाउन के दौरान, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और 2013 के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का भी उन्हें महत्व समझ आया, जिसकी उन्होंने संसद में आलोचना की थी लेकिन पीएम-गरीब़ कल्याण योजना के रूप में रीब्रांडिंग करके उसे चलाया जा रहा है। ”
उन्होंने आरोप लगाया, “बेशक, प्रधानमंत्री के पूंजीपति मित्र मनरेगा से खुश नहीं हैं और प्रधानमंत्री अपने अहंकार में कांग्रेस की योजनाओं को ध्वस्त करने के लिए कुछ भी करने की कोशिश करेंगे, भले ही इससे ग़रीबों का नुक़सान ही क्यों न हो। यही कारण है कि वह मनरेगा को ख़त्म करने में लगे हैं।”
रमेश का कहना था, “पिछले कुछ वर्षों में मनरेगा के लिए बजट में बार-बार कटौती की गई है। 2023-24 में यह जीडीपी का 0.25 प्रतिशत था, जो कि इसके इतिहास में सबसे कम था।” उन्होंने दावा किया कि भाजपा ने पारदर्शिता का बहाना बनाकर कांग्रेस सरकार में शुरू किए गए आधार तकनीक को ग़रीबों के ख़िलाफ़ एक हथियार में बदल दिया है।
कांग्रेस महासचिव ने कहा, “भाजपा ने जनवरी 2024 से प्रत्येक मनरेगाकर्मी के लिए आधार-आधारित भुगतान प्रणाली को अनिवार्य कर दिया है। हालांकि, 35 प्रतिशत पंजीकृत श्रमिक इसके तहत भुगतान प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं।”
रमेश ने दावा किया, “पिछले कुछ वर्षों में 7 करोड़ जॉब कार्ड डिलीट किए गए हैं। राष्ट्रीय मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम को अनिवार्य कर दिया गया है, लेकिन भारत के कई हिस्सों में डेटा कनेक्शन उपलब्ध नहीं है, और कई लोगों के पास स्मार्टफ़ोन नहीं हैं।”
उन्होंने कहा, “जैसा कि राहुल गांधी ने कहा है, श्रमिक न्याय कांग्रेस पार्टी के विज़न (दृष्टिकोण) का एक मुख्य हिस्सा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा का अभिन्न अंग है। हम भारत के श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ाई जारी रखेंगे, जो इस देश को लगातार मजबूत करने के काम में लगे हैं।”