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हिजाब विवाद के बीच मशहूर लेखिका तसलीमा नसरीन ने की समान नागरिक संहिता की वकालत

हिजाब विवाद के बीच मशहूर लेखिका तसलीमा नसरीन ने की समान नागरिक संहिता की वकालत

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नई दिल्ली, 12 फरवरी। कर्नाटक से उभरे हिजाब विवाद के बीच बांग्लादेश की मशहूर लेखिका तसलीमा नसरीन का बयान भी सामने आया है, जिन्होंने बुर्के की तुलना अंधेरे युग की शुद्धता की पट्टी से की है। महिलाओं के मुद्दों पर बड़ी बेबाकी से अपनी राय साझा करने के लिए लोकप्रिय लेखिका ने कहा कि बुर्का और हिजाब कभी भी महिलाओं की पसंद नहीं हो सकते। इस दौरान उन्होंने समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) को जरूरी बताया।

पॉलिटिकल इस्लाम की तरह, बुर्का/हिजाब भी आज पॉलिटिकल है

नसरीन की यह टिप्पणी कर्नाटक के उच्च शिक्षण संस्थानों में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब के अधिकार की मांग को लेकर भड़के विवाद के बीच आई है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘पॉलिटिकल इस्लाम की तरह, बुर्का/हिजाब भी आज पॉलिटिकल है।’

धर्म का अधिकार शिक्षा के अधिकार से ऊपर नहीं

नसरीन ने लिखा, ‘मुस्लिम महिलाओं को बुर्का एक अंधेरे युग की शुद्धता की पट्टी की तरह देखना चाहिए। मेरा मानना है कि संघर्ष को रोकने के लिए समान नागरिक संहिता और समान ड्रेस कोड आवश्यक हैं। धर्म का अधिकार शिक्षा के अधिकार से ऊपर नहीं है।’

पंजीकृत शैक्षणिक संस्थानों में समान ड्रेस कोड लागू करने की सुप्रीम कोर्ट से मांग

इस बीच, सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को बंधुत्व और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए पंजीकृत शैक्षणिक संस्थानों में स्टाफ सदस्यों और छात्रों के लिए एक समान ड्रेस कोड लागू करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

गौरतलब है कि इस मामले में एक दिन पहले शीर्ष अदालत ने कहा कि वह प्रत्येक नागरिक के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करेगी और मामलों की ‘उचित समय’ पर सुनवाई करेगी। कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार तक स्कूलों में धार्मिक पोशाकों पर रोक लगा दी है। याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। अपनी अर्जी में याचिकाकर्ता ने देश की शीर्ष अदालत से मामले में तुरंत सुनवाई की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया।

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