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भारतीय शहरों में महिलाओं के लिए रोजगार छह वर्षों में 10 प्रतिशत बढ़ा: रिपोर्ट

भारतीय शहरों में महिलाओं के लिए रोजगार छह वर्षों में 10 प्रतिशत बढ़ा: रिपोर्ट

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नई दिल्ली, 7 मार्च। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2025 से पहले शुक्रवार को आई एक रिपोर्ट के अनुसार, शहरी भारत में महिलाओं के लिए रोजगार में पिछले छह वर्षों (2017-18 से 2023-24) में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। चेन्नई के ग्रेट लेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, चालीस वर्ष की आयु की शहरी महिलाओं की रोजगार दर सबसे अधिक है, जो 2023-24 में 38.3 प्रतिशत थी।

2023-24 में 8.9 करोड़ से अधिक शहरी महिलाएं लेबर मार्केट से बाहर रहीं

रिपोर्ट में कहा गया कि 2023-24 में 8.9 करोड़ से अधिक शहरी महिलाएं लेबर मार्केट से बाहर रहीं। देखभाल संबंधी जिम्मेदारियां, लचीली कार्य व्यवस्था का अभाव और आवागमन संबंधी चुनौतियों जैसे कारण अनेक उच्च योग्यता प्राप्त महिलाओं को अर्थव्यवस्था में पूर्ण रूप से भाग लेने से रोकते हैं। रिपोर्ट में चिंता पैदा करने वाला ट्रेंड भी बताया गया। शहरी भारत में 20-24 वर्ष के आयु वर्ग के 10 प्रतिशत पुरुष बेरोजगार हैं, जबकि महिलाओं में यह आंकड़ा 7.5 प्रतिशत का है।

उच्च शिक्षित परिवारों में भी लैंगिक असमानता बरकरार 

रिपोर्ट के निष्कर्षों ने उच्च शिक्षित परिवारों में भी लैंगिक असमानता को उजागर किया। यहां तक कि दोहरी आय वाले, उच्च शिक्षित दम्पतियों में भी लैंगिक असमानताएं स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 62 प्रतिशत परिवारों में समान शैक्षणिक योग्यता के बावजूद पति अधिक कमाते हैं। इसके अलावा, 41 प्रतिशत घरों में पत्नियां घर के कामों की प्राथमिक जिम्मेदारी उठाती हैं, जबकि पतियों के मामले में यह आंकड़ा केवल 2 प्रतिशत है।

शहरी भारत: कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही

ग्रेट लेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट की अर्थशास्त्र की प्रोफेसर और निदेशक डॉ. विद्या महाम्बरे ने कहा, “शहरी भारत में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, लेकिन यह अभी भी आय, करियर विकास और घरेलू जिम्मेदारियों में सही मायने में लैंगिक समानता में तब्दील नहीं हो पाई है।

वास्तविक बदलाव लाने के लिए, सबसे पहले, हमें सभी के लिए अधिक रोजगार के अवसरों की आवश्यकता है।” उन्होंने आगे कहा, “चाइल्ड केयर नीतियों में संरचनात्मक सुधार, लचीली कार्य व्यवस्था और सामाजिक मानदंडों में बदलाव किया जाना चाहिए, जो महिलाओं पर अधिक बोझ डालते हैं।”

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