नहीं रहे विख्यात पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा, एम्स ऋषिकेश में चल रहा था कोरोना का इलाज
देहरादून, 21 मई। विख्यात पर्यावरणविद् एवं चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा का शुक्रवार को निधन हो गया। कोरोना संक्रमित 94 वर्षीय बहुगुणा का गत नौ मई से ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उपचार चल रहा था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली।
गौरतलब है कि सुंदरलाल बहुगुणा बीती आठ मई को कोरोना से पॉजिटिव पाए गए थे। अगले दिन उन्हें एम्स के कोविड आईसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया था। उनके फेफड़ों में 12 मई को संक्रमण पाया गया था, जिसके बाद से उन्हें एनआरबीएम मास्क के माध्यम से आठ लीटर ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था।
कॉर्डियोलॉजी विभाग के चिकित्सकों की टीम ने गत मंगलवार को बहुगुणा के हृदय संबंधी विभिन्न परीक्षण किए थे। इसके अलावा उनके दांए पैर में सूजन आने की शिकायत के बाद उनकी डीवीटी स्क्रीनिंग भी की गई थी। बहुगुणा मधुमेह के भी मरीज थे। इस बीच उन्हें न्यूमोनिया भी हो गया था। विभिन्न रोगों से ग्रसित होने के कारण वह पिछले कई वर्षों से दवाओं का सेवन कर रहे थे।
- बहुगुणा का निधन देश के लिए बड़ी क्षति: पीएम मोदी
इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने एक ट्वीट के जरिए अपने शोक संदेश में लिखा, ‘सुंदरलाल बहुगुणा का निधन हमारे देश के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के हमारे सदियों पुराने लोकाचार को प्रकट किया। उनकी सादगी और करुणा की भावना को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। मेरे विचार उनके परिवार और कई प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति।’
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अपने शोक संदेश में लिखा, ‘चिपको आंदोलन के प्रणेता व विश्व में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा के निधन का अत्यंत पीड़ादायक समाचार मिला। यह खबर सुनकर मन बेहद व्यथित है। यह सिर्फ उत्तराखंड के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए अपूरणीय क्षति है।’
- राजनीतिक व सामाजिक जीवन पर एक नजर
टिहरी में नौ जनवरी, 1927 को जन्मे सुंदरलाल ने बच्चों के खेलने की उम्र में ही राजनिति में प्रवेश कर लिया था। तब 13 वर्षीय बहुगुणा को राजनीति में आने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने प्रेरित किया था. सुमन गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे। सुंदरलाल ने उनसे सीखा कि कैसे अहिंसा के मार्ग से समस्याओं का समाधान करना है। 18 वर्ष की उम्र में वह अध्ययन के लिए लाहौर गए। 1956 में विमला देवी के साथ विवाह के बाद उन्होंने राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लिया।
सुंदरलाल ने अपने गांव में ही रहते हुए पहाड़ियों पर एक आश्रम खोला। उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला। फिर 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ों की सुरक्षा पर केंद्रित किया।
- चिपको आंदोलन के प्रणेता
इस बीच 1970 में पर्यावरण सुरक्षा के लिए शुरू हुआ आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगा। चिपको आंदोलन उसी का एक हिस्सा था। गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ रहे थे। इसी दौरान 26 मार्च, 1974 को चमोली जिले की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं, जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए। ये विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए।
वर्ष 1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की पांच हजार किलोमीटर की यात्रा की। उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और उनसे 15 वर्षों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया। इसके बाद पेड़ों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी गई।
- टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका
बहुगुणा ने टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की। तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के शासनकाल के दौरान उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी। वर्षों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 2004 में बांध पर फिर से काम शुरू किया गया।