‘दिलीप कुमार – द सब्सटेंस एंड द शैडो’
मुंबई, 7 जुलाई। बॉलीवुड के ‘ट्रेजडी किंग’ दिलीप कुमार के निधन से देशभर में शोक की लहर है। 98 वर्ष की उम्र में जिंदगी के सफर को विराम देने वाले दिलीप कुमार ने लगभग 55 वर्षों के फिल्मी करिअर के दौरान करीब 65 फिल्मों में काम किया।
अपने नैसर्गिक अभिनय व शानदार भाव प्रस्तुति के बल पर दिलीप कुमार ने फिल्म जगत में अलग ही मुकाम हासिल किया और युवा पीढ़ी के आदर्श बने। पेशेवर करिअर के दौरान ही दिलीप कुमार ने अपनी ऑटोबायोग्राफी लिखी थी… ‘दिलीप कुमार – द सब्सटेंस एंड द शैडो’।
इस पुस्तक में दिलीप कुमार ने अपनी निजी जिंदगी और काम से जुड़ी अनसुनी बातें शेयर की थीं। मसलन, उन्होंने भारतीय सिनेमा जगत की सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में एक मदर इंडिया क्यों छोड़ी। मशहूर एक्ट्रेस मधुबाला और सायरा बानो संग मोहब्बत से लेकर जीवन के अन्य कई पहलुओं का दिलीप कुमार ने इस पुस्तक में जिक्र किया है। पुस्तक की कुछ झलकियां यहां प्रस्तुत हैं…
पहली फिल्म – मेरी पहली फिल्म थी ज्वार भाटा। मैं इसकी स्क्रीनिंग के लिए हॉल में पहुंचा। जब खुद को पर्दे पर देखा, तो एक सवाल पूछा। अगर आगे भी मुझे काम मिलता रहा तो क्या मैं ऐसे ही एक्टिंग करूंगा। जवाब था, नहीं। मुझे महसूस हुआ कि एक्टिंग करना इतना आसान काम नहीं है। अगर मुझे ये करिअर जारी रखना है, तो अपना तरीका ईजाद करना होगा। तब अगला सवाल सामने आया, कैसे।
मधुबाला से मोहब्बत – क्या मुझे मधुबाला से प्यार था, जैसा कि उस वक्त के अखबार और मैगजीन बार-बार रिपोर्ट करते थे। हां, मैं उनकी तरफ आकर्षित था। निस्संदेह वह बहुत अच्छी एक्ट्रेस थीं। उनमें एक औरत के तौर पर भी ऐसी बहुत सी खूबियां थीं, जो मेरी उस वक्त की चाहत के करीब थीं। अजीब सा चाव था उनकी शख्सियत में। उन्हीं की वजह से मैं अपने शर्मीलेपन से बाहर आया।
इसलिए ठुकराई मदर इंडिया – मैं मदर इंडिया से पहले दो फिल्मों में नरगिस का हीरो रह चुका था। ऐसे में उनके बेटे के रोल का प्रस्ताव जमा नहीं। जब महबूब खान ने मुझे इस फिल्म की स्क्रिप्ट सुनाई तो मैं अभिभूत हो गया। मुझे लगा कि यह फिल्म हर कीमत पर बनाई जानी चाहिए। फिर उन्होंने नरगिस के एक बेटे का रोल मुझे ऑफर किया। मैंने उन्हें समझाया कि मेला और बाबुल में उनके साथ रोमांस करने के बाद यह माकूल नहीं होगा।
रिहर्सल करना कितना जरूरी है – देविका रानी ने जब मुझ समेत कई एक्टरों को बॉम्बे टॉकीज में नौकरी दी तो साथ में इसके लिए भी ताकीद किया कि रिहर्सल करना कितना जरूरी है। उनके मुताबिक एक न्यूनतम लेवल का परफेक्शन हासिल करने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी है। फिर ये सीख मेरे साथ शुरुआती वर्षों तक ही नहीं रही। बहुत बाद तक मैं मानसिक तैयारी के साथ ही सेट पर शॉट के लिए जाता था। मैं साधारण से सीन को भी कई टेक में और लगातार रिहर्सल के बाद करने के लिए कुख्यात था।
सायरा के प्यार में दीवाने – ये 1966 के 23 अगस्त की शाम थी। सायरा बानो अपने नए घर के बगीचे में खड़ी थीं। मैं जैसे ही कार से उतरा, नजर उन पर ठहर गई। चकित हो गया। अब तक मैं उन्हें एक लड़की के तौर पर सोचता था। इसीलिए उनके साथ फिल्में करने से भी बचता था। मगर यहां तो एक बेहद खूबसूरत औरत थी। वह हकीकत में मेरी सोच से भी ज्यादा खूबसूरत नजर आ रही थीं।
जब बहन ने मेरे हज्जाम को डांट पिलाई – मेरे हज्जाम को मेरे बालों से हमेशा दिक्कत होती थी। उसे लगता था कि ये कम्बख्त कुछ ज्यादा ही तेजी से बढ़ते हैं। हर 15 दिन में कटवाने की नौबत आ जाती थी। वह बार-बार उन्हें संवारता, मगर वे अपनी जगह पर ही नहीं ठहरते। एक बार का किस्सा याद आ रहा है। हज्जाम बाल काटने के लिए घर आया। मैं कहीं शूटिंग में मसरूफ था। मैंने उससे कह रखा था कि अगर घर पर न मिलूं तो इंतजार करना। जब मैं वापस आया तो देखा अलग ही नजारा। वह साहब मेरे ड्राइंगरूम में बैठ गए थे। ये मेरी बड़ी बहन को इतना नागवार गुजरा कि वह लगीं उसको डांट पिलाने। मैंने फौरन अपने हज्जाम से इसके लिए माफी मांगी। बाद में सकीना आपा से इस बात को लेकर मेरी झड़प भी हुई।
गंगा जमुना बार-बार थे अमिताभ – अभी कुछ दिनों पहले की बात है। मैं और अमिताभ गुफ्तगू कर रहे थे, तब उन्होंने मुझे ये किस्सा सुनाया। जब वह इलाहाबाद में थे और स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे। तब मेरी फिल्म गंगा जमुना वह बार-बार देखते थे। यह बात उन्हें बहुत गहरे से छू गई थी कि एक पठान यूपी के एक युवा का किरदार कितनी सहजता से निभा रहा है। वहां की बोली को कितने यकीनी तौर पर बोल रहा है।
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