कोरोना की दूसरी लहर के कारक वैरिएंट में खतरनाक बदलाव, टी478के म्यूटेशन से वैज्ञानिक भी हैरान
नई दिल्ली, 19 मई। देश में एक ओर जहां कोविड-19 का वैरिएंट बी.1.617.2 तेजी से फैल रहा है, वहीं उसमें हुआ एक खतरनाक बदलाव वैज्ञानिकों के लिए नई चुनौती बनकर उभरा है। इसके स्पाइक प्रोटीन में हुआ टी478के म्यूटेशन दुनियाभर की शीर्ष अनुसंधान प्रयोगशालाओं की नजर में है।
वैज्ञानिक संभावना व्यक्त कर रहे हैं कि बी.1.617.2 जितनी संक्रामकता दिखा रहा है, उसके पीछे कहीं यही म्यूटेशन तो नहीं। चिंताजनक यह है कि टी478के म्यूटेशन के बारे में अभी ज्यादा कुछ पता भी नहीं है। खास बात यह है कि यह म्यूटेशन बी.1.617 की अन्य उप श्रेणियों में भी नहीं मिला है।
इंस्टिट्यूट ऑफ जीनोमिक बायोलॉजी इन इंडिया के निदेशक और आईएनएसीओजी के वैज्ञानिक अनुराग अग्रवाल ने पुष्टि की है कि टी478के पर नजर रखी जा रही है। ताजा अध्ययन में पता चला है कि तेजी से फैल रहे मेक्सिकन वैरिएंट में भी टी478के म्यूटेशन है। बताया जा रहा है कि इसी के चलते संक्रमण का स्तर बढ़ रहा है।
अनुराग अग्रवाल ने बीते दिनों एक इंटरव्यू में कहा, ‘बी.1.617.1 में ई482क्यू म्यूटैशन न्यूट्रलाइजेशन रिडक्शन के लिए अहम था। पी681आर सेल इन्फ्यूजन को बढ़ाने में मदद करता है। हालांकि बी.1.617.2 सब-लीनिएज में कोई ई482क्यू म्यूटेशन नहीं है, इसके बावजूद यह फैल रहा है। इसका मतलब यह है कि ई482क्यू चिंताजनक नहीं है। एक नए म्यूटेशन टी478के की मौजूदगी निश्चित रूप से है, लेकिन अब तक उसके बारे में ज्यदा कुछ नहीं पता है। जब तक कुछ पता नहीं चलता, हम नहीं कह सकते कि ऐसा पी681आर की वजह से हो रहा है या टी478के इसका कारक है।’
अग्रवाल ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के रवींद्र गुप्ता के साथ मिलकर बी.1.617 के एंटीबॉडीज के प्रति रेस्पांस पर एक शोध किया था। उस शोध में भी टी478के का जिक्र है। गुप्ता ने पिछले हफ्ते ट्वीट किया था कि वह ब्रेकथ्रू इन्फेक्शंस के लिए टी487के म्यूटेशंस को जिम्मेदार मानते हैं। अन्य वैज्ञानिकों का कहना है कि इस सब-टाइप की संक्रामकता के पीछे स्पाइक प्रोटीन में टी478के और एल452आर म्यूटेशंस का कॉम्बिनेशन है।