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कांग्रेस ने केंद्र पर साधा निशाना, कहा- प्रधानमंत्री आदिवासियों के हितैषी होने का केवल दिखावा कर रहे

कांग्रेस ने केंद्र पर साधा निशाना, कहा- प्रधानमंत्री आदिवासियों के हितैषी होने का केवल दिखावा कर रहे

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नई दिल्ली, 15 नवंबर। कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर आदिवासियों को न्याय से वंचित करने के प्रयासों में ‘‘पूरी ताकत’’ लगा देने का आरोप लगाते हुए शुक्रवार को कहा कि ‘धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान’ (डीएजेजीयूए) वन अधिकार अधिनियम का मजाक है एवं सरकार के पाखंड को दर्शाता है। विपक्षी दल ने यह भी आरोप लाया कि डीएजेजीयूए ‘‘विशुद्ध मनुवादी अंदाज’’ में इन समुदायों को केवल जंगलों में रहने वाले ‘वनवासी’ के रूप में देखता है, जो अपने आप में राजनीतिक और आर्थिक शक्ति होने के बजाय सिर्फ श्रमिक हैं।

कांग्रेस महासचिव (संचार प्रभारी) जयराम रमेश ने कहा कि आज धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती है जो भारत के महानतम सपूतों में से एक और स्वशासन एवं सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक थे। रमेश ने एक बयान जारी कर कहा, ‘‘इस अवसर पर ‘नॉन बायोलॉजिकल’ प्रधानमंत्री बिहार के जमुई में आदिवासियों के हितैषी होने का दिखावा कर रहे हैं, जबकि उनकी सरकार आदिवासियों को न्याय से वंचित करने के प्रयासों में पूरी ताकत लगा रही है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान (डीएजेजीयूए) उनके इसी पाखंड को दर्शाता है। यह है तो भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर लेकिन यह वन अधिकार अधिनियम का पूरी तरह से मजाक बनाता है।’’ रमेश ने कहा कि मनमोहन सिंह सरकार द्वारा पारित वन अधिकार अधिनियम (एफआरए 2006) एक क्रांतिकारी कानून था और इसने वनों से संबंधित शक्ति एवं अधिकार को वन विभाग से ग्राम सभा को हस्तांतरित किया था।

उन्होंने बताया कि परंपरा से हटकर एक और कदम उठाते हुए जनजातीय कार्य मंत्रालय को कानून के क्रियान्वयन के लिए नोडल प्राधिकरण के रूप में सशक्त बनाया गया। रमेश ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम ने आदिवासी समुदाय और ग्राम सभाओं को वनों पर शासन और प्रबंधन का अधिकार दिया था जो वनों के लोकतांत्रिक शासन को सुनिश्चित करने के लिए एक बड़ा सुधार था।

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन इस क्रांति के बाद नरेन्द्र मोदी की प्रति-क्रांति आई।’’ उन्होंने कहा, ‘‘डीएजेजीयूए इस ऐतिहासिक कानून और वन प्रशासन में लोकतांत्रिक सुधार को मूल रूप से खत्म कर देता है।’’ रमेश ने कहा कि यह एफआरए के कार्यान्वयन में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को अधिकार देकर जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अधिकार को कमजोर करता है।

उन्होंने बताया कि एफआरए के वैधानिक निकायों – अर्थात ग्राम सभा, उप-मंडल समिति, जिला स्तरीय समिति और राज्य स्तरीय निगरानी समिति – को सशक्त बनाने के बजाय डीएजेजीयूए ने जिला और उप-मंडल स्तरों पर एफआरए की इकाइयों का एक विशाल समानांतर संस्थागत तंत्र बनाया है और उन्हें बड़े स्तर पर धनराशि एवं संविदा कर्मचारियों से लैस किया है।

रमेश ने कहा कि वे सीधे जनजातीय मामलों के मंत्रालय और राज्य जनजातीय कल्याण विभागों के केंद्रीकृत नौकरशाही नियंत्रण के अधीन हैं और एफआरए की वैधानिक निकायों के प्रति उनकी जवाबदेही नहीं है। उन्होंने कहा कि डीएजेजीयूए राज्य जनजातीय कल्याण विभागों द्वारा ग्राम सभाओं के एफआरए कार्यान्वयन और सीएफआर प्रबंधन गतिविधियों के लिए तकनीकी एजेंसियों/डोमेन विशेषज्ञों/कॉर्पोरेट एनजीओ को शामिल करता है और उनकी सेवाएं लेता है।

रमेश ने तर्क दिया कि इन एफआरए इकाइयों को वे काम करने हैं जिन्हें एफआरए वैधानिक निकायों को कानून के तहत करना आवश्यकता हैं और इन वैधानिक निकायों को इन एफआरए इकाइयों के उप अंग के रूप में छोड़ दिया गया है। उन्होंने कहा कि एफआरए की इन इकाइयों को नाममात्र के एफआरए निकायों का आदेश मानने तक सीमित कर दिया गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘इसमें शामिल आर्थिक और सामाजिक पहलुओं पर ध्यान दिए बिना ऐसा किया गया है, जबकि इसके लिए भारी भरकम बजट आवंटित किया गया है (प्रत्येक सीएफआर के लिए तकनीकी एजेंसियों को एक लाख रुपये)। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार ने ‘वनमित्र’ ऐप बनाने के लिए ‘महाराष्ट्र नॉलेज कंपनी लिमिटेड’ (एमकेसीएल) को नियुक्त किया जिसने एफआरए दावों को प्रस्तुत करने की पारदर्शी प्रक्रिया को एक अस्पष्ट, ऑनलाइन प्रक्रिया में बदल दिया और इसकी जिम्मेदारी तकनीकी ऑपरेटरों ने संभाली है।’’

उन्होंने बताया कि इसके परिणामस्वरूप तीन लाख दावे खारिज कर दिए गए। रमेश ने कहा कि ऐसी तकनीकी एजेंसियों की भागीदारी के कारण बड़े पैमाने पर ऐसी घटनाएं होने से आदिवासी समुदाय चिंतित है। उन्होंने कहा कि वन विभाग को अब सामुदायिक वन संसाधनों के प्रबंधन के लिए ग्राम सभा की अपनी समिति का हिस्सा बनने की अनुमति दे दी गई है, जो एफआरए का सीधा उल्लंघन है।

उन्होंने कहा, ‘‘आदिवासी और वनों में रहने वाले समुदायों को अपने संसाधनों पर शासन और प्रबंधन के लिए सशक्त बनाने के मकसद से एफआरए लागू किया गया था। डीएजेजीयूए विशुद्ध मनुवादी अंदाज में इन समुदायों को केवल जंगलों में रहने वाले वनवासी के रूप में देखता है, जो अपने आप में राजनीतिक और आर्थिक शक्ति होने के बजाय सिर्फ श्रमिक हैं।’’ रमेश ने कहा कि 12 मार्च, 2024 को महाराष्ट्र के नंदुरबार में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी द्वारा पेश किए गए आदिवासी संकल्प में यह बात स्पष्ट है कि कांग्रेस एफआरए के ईमानदार और निष्पक्ष क्रियान्वयन के लिए प्रतिबद्ध है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह झारखंड और महाराष्ट्र दोनों जगहों के लोगों के लिए हमारी गारंटी का हिस्सा है और आगामी विधानसभा एवं संसदीय चुनावों में भी यह हमारी प्राथमिकता बनी रहेगी।’’ रमेश ने अपने इस बयान को ‘टैग’ करते हुए सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री आदिवासी कल्याण के लिए आज जमुई में अपनी प्रतिबद्धता दिखाने की कोशिश करने वाले हैं लेकिन उनकी सरकार का धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान (डीएजेजीयूए) 2006 के क्रांतिकारी वन अधिकार अधिनियम और आदिवासी स्वशासन का सरासर मजाक है।’’

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