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कांग्रेस ने साझा किया राजमोहन गांधी का वीडियो, अमित शाह पर नेहरू को लेकर झूठ बोलने का लगाया आरोप

कांग्रेस ने साझा किया राजमोहन गांधी का वीडियो, अमित शाह पर नेहरू को लेकर झूठ बोलने का लगाया आरोप

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नई दिल्ली, 12 दिसंबर। कांग्रेस ने शुक्रवार को इतिहासकार-लेखक राजमोहन गांधी की टिप्पणियों का हवाला देते हुए गृह मंत्री अमित शाह के उस दावे को ‘‘सरासर झूठ’’ करार दिया कि पंडित जवाहरलाल नेहरू का पहली बार प्रधानमंत्री बनना ‘वोट चोरी’ के जरिये संभव हुआ था। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी की एक वीडियो क्लिप ‘एक्स’ पर साझा की, जिसमें उन्होंने कहा है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटियों ने 1946 में पटेल को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की वकालत की थी और उस समय प्रधानमंत्री पद का कोई सवाल ही नहीं था।

रमेश ने कहा, ‘‘प्रख्यात इतिहासकार-लेखक और पूर्व सांसद राजमोहन गांधी ने लोकसभा में केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा बोले गए एक सफेद झूठ का पर्दाफाश किया है।’’ वीडियो में राजमोहन गांधी ने कहा, ‘‘भारत छोड़ो आंदोलन के लिए जेल गए हजारों लोगों को 1945 में रिहा कर दिया गया था। मौलाना आजाद 1940 में कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन के बाद से कांग्रेस अध्यक्ष थे। चूंकि इतने सारे लोग जेल गए थे इसलिए नए अध्यक्ष के चुनाव का सवाल ही नहीं उठता था और अंग्रेजों द्वारा कांग्रेस पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया था।’’

उन्होंने कहा, इसलिए मौलाना आज़ाद अध्यक्ष बने रहे और 1946 में नए अध्यक्ष के चुनाव का सवाल उठा। राजमोहन गांधी का कहना है, ‘‘यह सवाल नहीं था कि प्रधानमंत्री कौन होगा। लोग जानते थे कि भारत जल्द आजादी हासिल कर लेगा लेकिन ब्रिटिश और भारतीय पक्ष के बीच कोई समझौता नहीं हुआ था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘एक प्रथा थी कि हर पीसीसी एक नाम आगे रखती थी कि इस व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए। और अगर तीन-चार नाम आते थे तो ये सभी नाम (महात्मा) गांधी जी के सामने रखे जाते थे और वह कहते थे ‘आइए इस व्यक्ति को एक मौका दें’ और लोग ज्यादातर उनसे सहमत होते थे।’’

राजमोहन गांधी ने कहा कि गांधी जी द्वारा चुने गए व्यक्ति को सर्वसम्मति से कांग्रेस का अगला अध्यक्ष चुना जाता था। उन्होंने कहा, ‘‘मैं यह नहीं कहता कि यह एक अच्छा तरीका था लेकिन उस समय इसका पालन किया जा रहा था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘1946 में जब अध्यक्ष पद का सवाल उठा तो कई पीसीसी ने सरदार पटेल का नाम आगे बढ़ाया कि उन्हें अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए और दो-तीन पीसीसी ने आचार्य कृपलानी का नाम भी आगे बढ़ाया, लेकिन किसी ने नेहरू का नाम आगे नहीं बढ़ाया।

राजमोहन गांधी ने कहा, ‘‘जबलपुर के डीपी मिश्रा ने अपनी किताब में लिखा है कि जब हमने पटेल का नाम आगे बढ़ाया, तो हमारे दिमाग में प्रधानमंत्री पद नहीं था।’’ उन्होंने बताया कि पटेल केवल एक बार 1931 में अध्यक्ष रहे थे, जबकि नेहरू 1929, 1936 और 1937 में अध्यक्ष रहे थे। राजमोहन गांधी ने कहा, ‘‘पटेल नेहरू से 14 साल बड़े थे, उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था और भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी बड़ी भूमिका थी। बहुत से लोगों ने सोचा था कि वे पटेल को अध्यक्ष बनाकर सम्मान देंगे लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के बारे में कोई विचार नहीं था।’’

राजमोहन गांधी ने कहा, ‘‘गांधी जी ने पटेल और कृपलानी को अपना नाम वापस लेने के लिए कहा और उन्होंने तुरंत ऐसा किया। जब कार्य समिति बैठी थी, तो उन्होंने (कार्य समिति के सदस्यों ने) केवल यह प्रस्ताव रखा कि नेहरू को अध्यक्ष बनाया जाए।’’ इतिहासकार ने कहा कि जब अंग्रेजों के साथ समझौता हुआ, तो नेहरू कांग्रेस अध्यक्ष थे और उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया था। अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में चुनाव सुधारों पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा था कि स्वतंत्रता के समय प्रधानमंत्री का चयन प्रदेश कांग्रेस कमेटियों के वोट से हो रहा था तथा सरदार वल्लभभाई पटेल को 28 वोट मिले, जबकि जवाहरलाल नेहरू को केवल दो वोट मिले। इसके बावजूद नेहरू प्रधानमंत्री बन गए।

रमेश ने ‘एक्स’ पर एक अन्य पोस्ट में कहा, ‘‘कल राज्यसभा में, इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने के बाद, सदन के नेता और भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा जी ने अपनी मुख्य मांग रखी कि राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत का दर्जा एक समान होना चाहिए। मुझे बीच में टोककर उन्हें याद दिलाना पड़ा कि बहुत पहले, 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा की आखिरी बैठक में उसके अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की थी कि जन गण मन और वंदे मातरम् को बराबर सम्मान दिया जाएगा… और उनका दर्जा बराबर होगा…।’’ उन्होंने दावा किया कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय और रवींद्रनाथ टैगोर को एक-दूसरे के विरुद्ध खड़ा करने और गुरुदेव का अपमान करने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की रणनीति उलटा पड़ गई है।

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