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सीजेआई चंद्रचूड़ ने अमेरिका में कहा – न्यायाधीश निर्वाचित नहीं होते, लेकिन उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है’

सीजेआई चंद्रचूड़ ने अमेरिका में कहा – न्यायाधीश निर्वाचित नहीं होते, लेकिन उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है’

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नई दिल्ली, 24 अक्टूबर। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा है कि न्यायाधीश यद्यपि निर्वाचित नहीं होते हैं, लेकिन उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि न्यायपालिका के पास प्रौद्योगिकी के साथ तेजी से बदल रहे समाज के विकास में ‘प्रभाव को स्थिर’ करने की क्षमता होती है।

संप्रति अमेरिका के दौरे पर गए सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह बात जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी लॉ सेंटर, वॉशिंगटन डीसी और सोसाइटी फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एसडीआर), नई दिल्ली द्वारा वॉशिंगटन में सोमवार को आयोजित तीसरी तुलनात्मक संवैधानिक कानूनी चर्चा में कही। चर्चा का विषय ‘भारत और अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालयों के परिप्रेक्ष्य से’ था। वह सामान्य तौर पर की जाने वाली उस आलोचना का जवाब दे रहे थे कि निर्वाचित नहीं होने वाले न्यायाधीशों को कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘मेरा मानना है कि न्यायाधीशों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, भले ही हम निर्वाचित नहीं होते हैं। हम हर पांच साल में लोगों के पास वोट मांगने नहीं जाते हैं। लेकिन इसका एक कारण है…मेरा मानना है कि इस अर्थ में न्यायपालिका हमारे समाज के विकास में प्रभाव को स्थिर करने वाली है, विशेष तौर पर तब, जबकि हमारे इस दौर में जिसमें यह प्रौद्योगिकी के साथ बहुत तेजी से बदल रहा है।’

न्यायाधीश ऐसी आवाज होते हैं, जो समय के उतार चढ़ावसे परे होती है

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “न्यायाधीश ऐसी आवाज होते हैं, जो ‘समय के उतार चढ़ाव’ से परे होती है और अदालतों के पास समाज में प्रभाव को स्थिर करने की क्षमता होती है। मेरा मानना है कि भारत जैसे बहुलवादी समाज के संदर्भ में अपनी सभ्यताओं, अपनी संस्कृतियों की समग्र स्थिरता में हमें एक भूमिका का निर्वहन करना है।’’

अदालतें सामाजिक परिवर्तन के लिए सम्मिलन का केंद्र बिंदु बन गई हैं

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अदालतें नागरिक समाज और सामाजिक परिवर्तन के लिए सम्मिलन का केंद्र बिंदु बन गई हैं। उन्होंने कहा, ‘इसलिए, लोग केवल नतीजों के लिए अदालतों का रुख नहीं करते। साफ तौर पर कहें तो संवैधानिक परिवर्तन की प्रक्रिया में आवाज उठाने के लिए भी लोग अदालतों का दरवाजा खटखटाते हैं…।’

उन्होंने कहा, ‘यह एक कठिन सवाल है और इसके कई कारण हैं कि लोग अदालतों में क्यों आते हैं। अदालतों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है… क्योंकि हम शासन की कई संस्थाएं हैं… निस्संदेह, शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत मौजूद है। हम विधायिका की भूमिका अपने हाथ में नहीं लेते या हम कार्यपालिका की भूमिका खुद ही निभाते हैं। अदालतें ऐसी जगह बन रही हैं, जहां लोग समाज के लिए अभिव्यक्ति को व्यक्त करने के वास्ते आते हैं, जिसे वे हासिल करना चाहते हैं।’

समलैंगिक विवाहों के मामले में अपने निर्णय पर अडिग

समलैंगिक विवाहों को अनुमति देने के मामले पर प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने एक बार फिर कहा, “हम न्यायिक निर्णयों के माध्यम से कानून नहीं बना सकते। समलैंगिक विवाहों को अनुमति देने के लिए पूरी तरह से एक ‘नयी विधायी व्यवस्था’ बनाना संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसके लिए विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को रद करना ‘बीमारी से भी बदतर’ नुस्खा प्रदान करने जैसा होगा।”

उल्लेखनीय है कि गत 17 अक्टूबर को सीजेआई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि यह संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। सीजेआई और अमेरिका के उच्चतम न्यायालय के एसोसिएट जस्टिस स्टीफन ब्रेयर ने इस अवसर पर विचार व्यक्त किए। इस कार्यक्रम का संचालन जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी लॉ सेंटर के डीन एवं कार्यकारी उपाध्यक्ष विलियम एम ट्रेनर ने किया।

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