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बिहार : सीएम नीतीश कुमार ने आनंद मोहन की रिहाई का किया बचाव, बोले – ‘इसमें कोई भी पॉलिटिकल चीज नहीं’

बिहार : सीएम नीतीश कुमार ने आनंद मोहन की रिहाई का किया बचाव, बोले – ‘इसमें कोई भी पॉलिटिकल चीज नहीं’

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पटना, 28 अप्रैल। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन की जेल से रिहाई का बचाव करते हुए कहा है कि इसमें कुछ भी चौंकाने वाली बात या राजनीति की चीज नहीं है।

नीतीश कुमार ने शुक्रवार को पहली बार मीडिया के सामने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, ‘इतने लोगों को जेल से छुट्टी मिलती है। एक आदमी की रिहाई पर जो बात की जा रही है, हमको तो बड़ा आश्चर्य लग रहा है। इसमें कौन सी ऐसी बात है, ऐसा तो कुछ भी नहीं है। इस बारे में राज्य के मुख्य सचिव ने कल ही सारी बात पहले ही बता दी थी।’

मुख्यमंत्री ने अलग-अलग राज्यों में बंदियों की रिहाई का आंकड़ा भी दिखाया। उन्होंने कहा कि कोई आईएएस ऑफिसर के साथ इस तरह के घटना घटी तो क्या आजीवन रहने के लिए कोई प्रावधान दिया गया है। यह कौन राज्य में है? सीपीआईएमएल की मांग पर सीएम ने कहा कि मांग का कोई मतलब नहीं है। यह किसी पार्टी की मांग नहीं बल्कि प्रावधान और नियम के अनुसार लोगों को रिलीज किया जाता है। यह कोई पॉलिटिकल चीज नहीं है।

गौरतलब है कि वर्ष 1994 में तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के केस में आनंद मोहन को उम्रकैद की सजा हुई थी, लेकिन जेल मैनुअल में बदलाव के बाद उनको गुरवार को रिहा कर दिया गया। आनंद मोहन की रिहाई को बिहार में नीतीश कुमार के पॉलिटिकल कार्ड के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन विपक्ष उनपर निशाना साध रहा है। बिहार सरकार के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने कल कहा था कि आनंद मोहन को कोई विशेष छूट नहीं दी गई है। उनकी रिहाई भी जेल नियमों के मुताबिक ही हुई है।

सुशील मोदी ने भी की थी रिहाई की मांग

सीएम नीतीश कुमार ने इस मसले पर भाजपा के विरोध पर सुशील कुमार मोदी और आनंद मोहन की तस्वीर दिखाते हुए कहा कि सुशील मोदी ने खुद आनंद मोहन की रिहाई की मांग की थी। आनंद मोहन 15 साल से भी ज्यादा समय तक जेल में रहे, सभी से राय लेकर निर्णय लिया गया है।

‘क्या सरकारी अधिकारी की हत्या और सामान आदमी की हत्या में फर्क होना चाहिए

उन्होंने कहा कि बिहार में 2017 से अब तक 22 बार परिहार बोर्ड की बैठक हुई और 698 बंदियों को रिहा किया गया। बिहार में इस कानून को खत्म कर दिया गया, इसमें क्या दिक्कत है। क्या सरकारी अधिकारी की हत्या और सामान आदमी की हत्या में फर्क होना चाहिए।

नीतीश कुमार ने कहा कि यह पहले भी हुआ है। इस बार भी किया है। 27 लोगों में सिर्फ एक आदमी की ही चर्चा क्यों हो रही है। जब आनंद मोहन की रिहाई नहीं हुई थी तो कितने लोग बोल रहे थे कि उनकी रिहाई होनी चाहिए, आज हो गया तो विरोध कर रहे हैं। जो लोग विरोध कर रहे हैं, वह बताएं उनका डिमांड क्या थी। हर जगह लोगों को छोड़ा जाता है, केंद्र सरकार के द्वारा भी लोगों को छोड़ा जाता है। नियम और प्रावधान के अनुसार लोगों को रिलीज किया जाता है।

कोर्ट भी पहुंच गया है मामला

इस बीच यह मामला हाई कोर्ट पहुंच गया है। सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका पटना हाई कोर्ट में दायर की गई है। याचिका में मांग की गई है कि वह सरकार की तरफ से जेल मैनुअल में किए गए संशोधन पर रोक लगाए। इस बदलाव को याचिकाकर्ता ने गैरकानूनी बताया है और कहा कि सरकार के इस फैसले से सरकारी सेवकों का मनोबल गिरेगा।

1994 में कर दी गई थी डीएम कृष्णैया की हत्या

स्मरण रहे कि बिहार के गैंगस्टर छोटन शुक्ला की चार दिसम्बर, 1994 को हत्या कर दी गई थी, जिससे मुजफ्फरपुर इलाके में तनाव फैल गया था। पांच दिसंबर को हजारों लोग छोटन शुक्ला का शव सड़क पर रखकर प्रदर्शन कर रहे थे, तभी गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैया वहां से गुजर रहे थे। नाराज लोगों ने पहले तो उनकी कार पथराव किया, फिर उन्हें कार से बाहर निकाल कर पीट-पीटकर मार डाला। आरोप लगा कि डीएम की हत्या करने वाली उस भीड़ को आनंद मोहन ने ही उकसाया था।

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