कच्चातिवू द्वीप विवाद को लेकर अमित शाह का प्रहार, बोले – ‘कांग्रेस का मकसद केवल इस देश को तोड़ना है’
नई दिल्ली, 31 मार्च। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को कच्चातिवू द्वीप विवाद को लेकर कांग्रेस पर प्रहार करते हुए कहा कि वर्ष 1974 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को ‘स्वेच्छा से छोड़ने’ के लिए न तो कांग्रेस व न ही इंदिरा गांधी को कोई पछतावा था।
सूचना के अधिकार (आरटीआई) रिपोर्ट में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के 1974 में कच्चातिवू के रणनीतिक द्वीप को श्रीलंका को सौंपने के फैसले का खुलासा होने के बाद अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस का मकसद केवल इस देश को विभाजित करना या तोड़ना है।
अमित शाह ने सोशल प्लेटफॉर्म एक्स पर साझा किये एक पोस्ट में कहा, ‘कांग्रेस के लिए ताली! उन्होंने स्वेच्छा से कच्चतिवू को छोड़ दिया और उन्हें इसका कोई पछतावा भी नहीं था। कभी कांग्रेस के एक सांसद देश को विभाजित करने के बारे में बोलते हैं और कभी-कभी वे भारतीय संस्कृति और परंपराओं को बदनाम करते हैं। इससे पता चलता है कि वे भारत की एकता और अखंडता के खिलाफ हैं। वे केवल हमारे देश को विभाजित करना या तोड़ना चाहते हैं।’
Slow claps for Congress!
They willingly gave up #Katchatheevu and had no regrets about it either. Sometimes an MP of the Congress speaks about dividing the nation and sometimes they denigrate Indian culture and traditions. This shows that they are against the unity and integrity…— Amit Shah (Modi Ka Parivar) (@AmitShah) March 31, 2024
पीएम मोदी ने भी एक पोस्ट के जरिए कांग्रेस को कोसा
उल्लेखनीय है कि पीएम मोदी ने भी एक समाचार लेख साझा करते हुए उन घटनाओं का विस्तृत विवरण दिया, जिनके कारण श्रीलंका द्वीप पर आगे निकल गया। उन्होंने सोशल प्लेटफॉर्म एक्स पर किये पोस्ट में लिखा कि कांग्रेस पार्टी भरोसा करने के लायक नहीं है।
पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा, ‘आंखें खोलने वाली और चौंका देने वाला! नए तथ्यों से पता चलता है कि कांग्रेस ने कैसे बेरहमी से कच्चातिवू को श्रीलंका को दे दिया। इससे हर भारतीय नाराज है और इससे पुष्टि होती है कि लोग कांग्रेस पर कभी भरोसा नहीं कर सकते।’ पीएम ने कांग्रेस पर भारत की एकता को कमजोर करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना कांग्रेस का 75 वर्षों से काम करने का तरीका रहा है।’
गौरतलब है कि आजादी के बाद भी भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच स्थित कच्चातिवु द्वीप का उपयोग पारंपरिक रूप से श्रीलंकाई और भारतीय दोनों मछुआरों द्वारा किया जाता था। 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कच्चातिवु को श्रीलंकाई क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया था।
पीएम मोदी ने हाल ही में तमिलनाडु की एक रैली में भी यह मुद्दा उठाया था। इस महीने की शुरुआत में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने 15 मार्च को कन्याकुमारी में अपनी रैली में “स्पष्ट झूठ” बोला था कि तमिलनाडु के मछुआरों को केवल द्रमुक के पिछले “पाप” के कारण श्रीलंका से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
स्टालिन ने कहा था, ‘तमिलनाडु के लोग सही इतिहास अच्छी तरह से जानते हैं कि द्रमुक सरकार के कड़े विरोध के बावजूद 1974, 1976 समझौते के तहत कच्चातिवू द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया था। क्या प्रधानमंत्री इस हद तक नासमझ हैं कि एक राज्य सरकार देश का एक हिस्सा दूसरे देश को दे सकता है।’