एम्स का अध्ययन : कोरोना का डेल्टा वैरिएंट बहुत ही खतरनाक, वैक्सीन लेने के बाद भी दिखा रहा असर
नई दिल्ली, 9 जून। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने एक अध्ययन में पाया है कि कोविड-19 का डेल्टा वैरिएंट बहुत ही खतरनाक है और यह वैक्सीन की एक या दोनों डोज ले चुके लोगों को भी संक्रमित कर दे रहा है। यही नहीं वरन इस संक्रमण के इस वैरिएंट में इतनी ताकत है कि वह वैक्सीन का प्रभाव भी कम कर दे रहा है।
एम्स के अध्ययन में पता चला है कि वैक्सीन ले चुके लोगों में उत्पन्न हो रहे संक्रमण के ज्यादातर मामलों के पीछे कोरोना का डेल्टा वैरिएंट (बी1.617.2) है। लोगों ने चाहे कोविशील्ड ली हो या फिर कोवैक्सीन, वायरस का वैरिएंट उन्हें संक्रमित करने में सक्षम है।
वैक्सीन का असर भी कम कर देता है डेल्टा वैरिएंट
एम्स की स्टडी रिपोर्ट के अनुसार परीक्षण के दौरान उन सभी मरीजों में वायरल लोड काफी ज्यादा था, जिन्होंने कोविशील्ड अथवा कोवैक्सीन की चाहे दोनों डोज या फिर एक डोज ली थी।
ज्ञातव्य है कि बीते दिनों राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र और इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक एंड इंटीग्रेटिव बायॉलजी ने भी मिलकर एक अध्ययन किया था, जिसमें पता चला था कि डेल्टा वैरिएंट संक्रमण रोकने के लिहाज से वैक्सीन के असर को कम कर देता है। हालांकि, उनकी स्टडी में यह भी कहा गया है कि वैक्सीन फिर भी कोरोना के खिलाफ काफी कारगर है।
63 संक्रमितों के नमूनों पर किया गया अध्ययन
एम्स ने अपने अध्ययन में वैसे 63 लोगों को शामिल किया था, जो वैक्सीन लेने के बाद भी कोविड-19 महामारी के शिकार हो गए थे। इनमें 36 ऐसे लोग थे, जिन्होंने वैक्सीन की दोनों डोज ले ली थी जबकि 27 लोगों ने एक डोज ली थी। इनमें 10 लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन लगी थी जबकि 52 को कोवैक्सीन।
इन संक्रमितों में किसी की भी मौत नहीं हुई
संस्थान ने बताया कि इन 63 में से 41 पुरुष थे जबकि शेष 22 महिलाएं। अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि ये सभी 63 लोग वैक्सीन लेने के बाद भी संक्रमित तो हो गए थे, लेकिन इनमें एक की भी मौत नहीं हुई है। हालांकि, इन्हें ज्यादातर लोगों को 5-7 दिनों तक बहुत ज्यादा बुखार रहा था।
दोनों डोज लेने वाले 60% लोगों में मिला डेल्टा वैरिएंट
अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया कि वैक्सीन की दोनों डोज लेने वाले 60% लोगों में जबकि एक डोज लेने वाले 77% लोगों को वायरस के डेल्टा वैरिएंट ने संक्रमित किया था। एम्स के आपातकालीन विभाग में आने वाले मरीजों की नियमित जांच के लिए जमा किए गए नमूनों का ही अध्ययन किया गया था। इनमें बहुत ज्यादा बुखार, सांस लेने में तकलीफ और सिरदर्द की समस्या पाई गई थी।