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चित्रकूट में 3 दिवसीय ऐतिहासिक गधा मेला शुरू – फिल्मी सितारों के नाम पर गधों की लगी बोली

चित्रकूट में 3 दिवसीय ऐतिहासिक गधा मेला शुरू – फिल्मी सितारों के नाम पर गधों की लगी बोली

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चित्रकूट, 21 अक्टूबर। धार्मिक नगरी चित्रकूट में दीपावली के दूसरे दिन परंपरागत तीन दिवसीय ‘गधा मेला’ मंगलवार से शुरू हुआ। ‘ईटीवी भारत’ की रिपोर्ट के अनुसार रामघाट के समीप आयोजित मेले में बुंदेलखंड समेत मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और बिहार से व्यापारी कई नस्लों के गधों को लेकर पहुंचे हैं। मेलों के दौरान इन गधों की खरीद फरोख्त होगी।

सन्नी देओल1.05 लाख और शाहरुख खान70 हजार में बिका,

दिलचस्प यह है कि पिछले वर्षों की भांति इस बार भी फिल्मी सितारों के नामों वाले गधे मेले में बिक्री के लिए पहुंचे हैं, जिनमें से पहले दिन कुछ की बिक्री भी हुई। व्यापारी गोविंद त्रिपाठी ने बताया कि मेले के पहले दिन ‘शाहरुख खान’ नाम का गधा 70 हजार रुपये में बिका। वहीं आकर्षण का केंद्र रहे ‘सन्नी देओल’ की बोली एक लाख 50 हजार रुपये रखी गई थी, जो एक लाख पांच हजार में बिका है।

सलमान खान को पहले दिन नहीं मिला कोई खरीदार

लेकिन 90 हजार रुपये की बोली वाले गधे ‘सलमान खान’ को पहले दिन कोई खरीदार नहीं मिला। हालांकि गोविंद त्रिपाठी का कहना था कि पहले की तरह अब इस मेले में रौनक नहीं रही। आधुनिकता के दौर में गधों का उपयोग न के बराबर हो गया है, जिसकी वजह इस बार मेले में गधों की संख्या कम हो गई है।

तौलिया के अंदर हाथ छिपा कर होता है सौदा

मजेदार तथ्य यह है कि गधा मेले में खरीद-फरोख्त का तरीका भी पुराना है। खरीदने और बेचने वाले दोनों तौलिये के अंदर हाथ छिपा कर लेनदेन पक्का करते हैं। इस मेले में प्रशासन का भी सहयोग व्यापारियों को मिलता है। प्रशासन साफ-सफाई के साथ ही बिजली व पानी का इंतजाम करता है और सुरक्षा के लिए पुलिस भी तैनात रहती है।

रोचक इतिहास समेटे हुए है 300 वर्ष पुराना अनोखा गधा मेला

गधा मेला व्यवस्थापक रमेश पांडेय बताते हैं कि इस अनोखे मेला का इतिहास भी रोचक है। आरंगजेब 300 वर्ष पूर्व लाव-लश्कर के साथ चित्रकूट पहुंचा और मत्स्यगयेन्द्र नाथ स्वामी मंदिर में पहुंच कर उसने आवाज लगाई। जब उसे कोई उत्तर नहीं मिला तब उसने सैनिकों को शिव लिंग को तोड़ देने का फरमान दिया।

लेकिन जब सैनिकों ने शिव लिंग को नष्ट करने लगे तभी उन्हें उल्टी, दस्त होने लगी। वहीं, सैनिकों के साथ चल रहे गधों की मौत होने लगी। इससे औरंगजेब काफी परेशान हो गया और रामघाट के किनारे धुनी रमई बैठे बाबा बालक नाथ से उसने उपाय पूछा। इस पर बाबा बालक नाथ ने कहा कि वह भगवान मत्स्यगयेन्द्र नाथ से क्षमा मांगे।

इसके बाद औरंगजेब ने बाबा बालक नाथ से भभूत लेकर अपने सैनिकों को खिलाए तो वे स्वस्थ हो गए। लेकिन सामान ढोने वाला एक भी गधा नहीं बचा तो उसने मुनादी करवाई और घोड़ा-गधा ऊंचे दाम में खरीदने की बात कही, तब कई लोग चित्रकूट के रामघाट के पास स्थित वर्तमान गधा बाजार स्थल में पहुंच कर अपने गधों को बेचा। तब से इस मेले का सिलसिला जारी है। इस प्रकार यह गधा मेला लगभग 300 वर्ष पुराना अपना इतिहास समेटे हुए है।

मशीनीकरण के युग में कम होती जा रही गधों की डिमांड

हालांकि व्यवस्थापक रमेश पांडेय ने भी व्यापारी गोविंद त्रिपाठी की बात दोहराते हुए कहा कि आधुनिक परिवेश में गधों का इस्तेमाल बेहद कम हो गया है। लोग और कामगार इसे खरीदना नहीं चाहते क्योंकि अब सामान ढोने का कार्य मशीनरी से हो रहा है। गधों की डिमांड भी धीरे-धीरे कम होती जा रही है। पहले जैसे अब यह गधा मेला बचा नहीं है। कभी लाखों की संख्या में यहां गधा आते थे तो अब वह हजारों तक ही सीमित हो चुके हैं।

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