बिक गए थे परवेज़ मुशर्रफ! US Ex अफसर का सनसनीखेज खुलासा, 2002 में ही युद्ध के लिए तैयार थे भारत-पाक
वाशिगटन, 25 अक्टूबर। अमेरिका के पूर्व सीआईए अधिकारी जॉन किरियाको ने न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं। उन्होंने अमेरिका और भारत पाकिस्तान को लेकर कई बड़ी बातें बताई हैं। उन्होंने कि अमेरिकी खुफिया समुदाय को एक समय ऐसा लगता था कि भारत और पाकिस्तान 2002 में युद्ध के कगार पर थे। भारत मे संसद पर हुए हमले (दिसंबर 2001) और ऑपरेशन पराक्रम के तहत उत्पन्न तनावपूर्ण सैन्य गतिरोध के बाद भारत और पाकिस्तान युद्ध करने को तैयार थे।
बता दें कि किरियाको ने 9/11 के बाद पाकिस्तान में सीआईए के आतंकवाद विरोधी अभियानों का नेतृत्व किया था। उन्होंने बताया कि अमेरिका ने इस खतरे को इतनी गंभीरता से लिया कि उसने अमेरिकी परिवारों को उस समय इस्लामाबाद से निकाल दिया था। अमेरिका तानाशाहों के साथ काम करना पसंद करता है क्योंकि वहां जनता या मीडिया का दबाव नहीं होता।
पाकिस्तान को लेकर कह दी बड़ी बात
किरियाको ने भारत पाकिस्तान युद्ध के साथ ही पाकिस्तान, सऊदी अरब और दक्षिण एशिया की राजनीति से जुड़े कई बड़े राज खोले। उन्होंने बताया कि अमेरिका ने अरबों डॉलर की मदद देकर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ को “खरीद लिया” था और एक समय ऐसा भी आया था जब अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर पूरा नियंत्रण कर लिया था। तब परवेज मुशर्रफ ने अमेरिका को अपने परमाणु हथियारों की चाबी तक सौंप दी थी। किरियाको ने बताया कि सऊदी अरब ने एक्यू खान को बचाकर पाकिस्तान के परमाणु योजनाओं में दखल दिया था।
परवेज मुशर्रफ दोहरा खेल खेल रहे थे
किरियाको ने कहा कि पाकिस्तान के तब के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ अपने ही देश में दोहरा खेल खेल रहे थे। मुशर्रफ एक तरफ अमेरिका से आतंकवाद के खिलाफ सहयोग का दिखावा कर रहे थे। तो वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना और आतंकी गिरोहों को भारत के खिलाफ सक्रिय बनाए रखते थे। पाकिस्तानी सेना को आतंकवादी संगठन अल-कायदा की भी परवाह नहीं थी, उनकी असली चिंता सिर्फ और सिर्फ भारत था। मुशर्रफ दिखावे में अमेरिका का साथ दे रहे थे, लेकिन पर्दे के पीछे भारत के खिलाफ काम कर रहे थे।
अमेरिका पर लगाए बड़े आरोप
किरियाकू ने कहा कि अमेरिका खुद को लोकतंत्र और मानवाधिकारों का रक्षक के रूप में दिखाता है लेकिन सच्चाई यह है कि ये देश वही करता है जिसमें उसे फायदा हो। अगर आप देखें तो अमेरिका और सऊदी अरब के बीच का रिश्ता ही पूरी तरह तेल और हथियार पर आधारित है। अमेरिका उसका तेल खरीदता है और वह अमेरिका का हथियार। अमेरिका और सऊदी अरब का असली रिश्ता यही है।
