वित्त मंत्री सीतारमण ने पेश किया आर्थिक सर्वेक्षण : वित्त वर्ष 2024-25 में जीडीपी 6.5 से 7 फीसदी रहने का अनुमान
नई दिल्ली, 22 जुलाई। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट से एक दिन पहले सोमवार को वित्त वर्ष 2023-24 का आर्थिक सर्वेक्षण लोकसभा में पेश किया। इस आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 6.5 से 7 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। आर्थिक सर्वेक्षण में जोखिम को संतुलित रखा गया है।
वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग के आर्थिक प्रभाग द्वारा तैयार और मुख्य आर्थिक सलाहकार की देखरेख में तैयार आर्थिक सर्वेक्षण दस्तावेज, अर्थव्यवस्था की स्थिति और 2023-24 (अप्रैल-मार्च) के विभिन्न संकेतकों और चालू वर्ष के लिए कुछ दृष्टिकोण की जानकारी देता है।
वित्त मंत्रालय द्वारा जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में बताया गया है कि भारत का कार्यबल लगभग 56.5 करोड़ है, जिसमें से 45 प्रतिशत से अधिक कृषि में, 11.4 प्रतिशत विनिर्माण में, 28.9 प्रतिशत सेवाओं में और 13.0 प्रतिशत निर्माण में कार्यरत हैं।
महिला श्रम शक्ति की भागीदारी बढ़ रही, बेरोजगारी दर में गिरावट
सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी पिछले छह वर्षों में बढ़ रही है और बेरोजगारी दर में गिरावट आ रही है। सर्वेक्षण में पिछले छह वर्षों में भारतीय श्रम बाजार संकेतकों में सुधार पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें 2022-23 में बेरोजगारी दर घटकर 3.2 प्रतिशत हो गई।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में महामारी के बाद रोजगार में सुधार हुआ है। इसमें कहा गया है, ‘महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर छह वर्षों से बढ़ रही है, 2017-18 में 23.3 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 37 प्रतिशत हो गई है, जो मुख्य रूप से ग्रामीण महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से प्रेरित है।’
सालाना लगभग 78.51 लाख नौकरियां पैदा करने की जरूरत
बुनियादी ढांचे के क्षेत्र के लिए सरकार के प्रयासों के बीच सर्वेक्षण में कहा गया है कि सर्विस सेक्टर एक प्रमुख रोजगार सृजनकर्ता बना हुआ है जबकि कंस्ट्रक्शन एरिया हाल ही में प्रमुखता से उभर रहा है। बढ़ती आबादी के बीच रोजगार क्षेत्र की मांगों को पूरा करने के लिए सर्वेक्षण ने बताया कि भारतीय अर्थव्यवस्था को गैर-कृषि क्षेत्र में सालाना लगभग 78.51 लाख नौकरियां पैदा करने की जरूरत है।
आर्थिक गतिविधियों में AI हो रही प्रचलित
पिछले पांच वर्षों में ईपीएफओ के तहत दोगुने से अधिक की वृद्धि हुई है, जो औपचारिक रोजगार में स्वस्थ वृद्धि का संकेत है। AI पर सर्वेक्षण ने कहा कि चूंकि विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में AI अधिक प्रचलित हो रही है, इसलिए सामूहिक कल्याण की दिशा में तकनीकी विकल्पों को आगे बढ़ाना महत्वपूर्ण है। नियोक्ताओं को प्रौद्योगिकी और लेबर को तैनात करने में संतुलन बनाना चाहिए।
महिलाओं की श्रम शक्ति दर बढ़ाने के लिए सुझाव
इसके अलावा सुझाव दिया गया है कि कृषि प्रसंस्करण और देखभाल अर्थव्यवस्था गुणवत्तापूर्ण रोजगार पैदा करने और बनाए रखने के लिए आशाजनक क्षेत्र हैं। सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों के माध्यम से कौशल विकास से गुजरने वाले उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि ने ‘कौशल भारत’ पर जोर दिया है। हालांकि, भूमि उपयोग प्रतिबंध, बिल्डिंग कोड और महिलाओं के रोजगार के लिए क्षेत्रों और घंटों की सीमा जैसी नियामक बाधाएं रोजगार सृजन में बाधा डालती हैं। रोजगार को बढ़ावा देने और महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर बढ़ाने के लिए इन बाधाओं को दूर करना आवश्यक है।
नीतिगत फोकस के प्रमुख क्षेत्र
सर्वेक्षण में कहा गया है कि अल्पावधि से मध्यम अवधि में नीतिगत फोकस के प्रमुख क्षेत्रों में रोजगार और कौशल सृजन, कृषि क्षेत्र की पूरी क्षमता का दोहन, एमएसएमई बाधाओं को दूर करना, भारत के हरित संक्रमण का प्रबंधन, चीनी समस्या से कुशलतापूर्वक निपटना, कॉरपोरेट बांड बाजार को मजबूत करना, असमानता से निपटना और हमारी युवा आबादी की स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार करना शामिल है।
अमृत काल के लिए विकास रणनीति 6 प्रमुख क्षेत्रों पर आधारित
- निजी निवेश को बढ़ावा देने पर जान बूझकर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
- भारत के मित्तलस्टैंड (एमएसएमई) का विकास और विस्तार एक रणनीतिक प्राथमिकता है।
- भविष्य के विकास के इंजन के रूप में कृषि की क्षमता को पहचाना जाना चाहिए और नीतिगत बाधाओं को दूर किया जाना चाहिए।
- भारत में हरित संक्रमण के वित्तपोषण को सुरक्षित करने की आवश्यकता है।
- शिक्षा-रोजगार अंतर को पाटना होगा।
- भारत की प्रगति को बनाए रखने और तेज करने के लिए राज्य की क्षमता और योग्यता का केंद्रित निर्माण आवश्यक है।
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, मध्यम अवधि में यदि हम पिछले दशक में किए गए संरचनात्मक सुधारों पर काम करते हैं, तो भारतीय अर्थव्यवस्था निरंतर आधार पर 7 प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ सकती है। इसके लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र के बीच त्रिपक्षीय समझौते की आवश्यकता है।