कानून मंत्रालय ने दी जानकारी – देशभर की अदालतों में साढ़े चार करोड़ से अधिक मामले लंबित
नई दिल्ली, 29 जुलाई। भारत की धीमी न्याय प्रक्रिया और देशभर की अदालतों में वर्षों से लंबित मामलों की संख्या को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। मौजूदा सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा कई पूर्व मुख्य न्यायाधीश भी इसे लेकर चिंता जताते रहे हैं। अब कानून एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद के मॉनसून सत्र के दौरान इस बाबत जानकारी दी है कि देशभर के न्यायालयों में कितने मामले लंबित हैं।
एक लाख केस 30 वर्ष से अधिक पुराने
लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय कानून मंत्रालय ने बताया कि 24 जुलाई तक देशभर के विभिन्न जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में 4,43,92,136 (लगभग साढ़े चार करोड़) से अधिक मामले लंबित हैं। मंत्रालय ने यह भी बताया है कि इनमें से लगभग एक लाख मामले 30 वर्ष से अधिक पुराने हैं।
निचली अदालतों में लंबित मामलों के लिहाज से यूपी सबसे आगे
निचली अदालतों में लंबित मामलों की बात करें तो सबसे ज्यादा आंकड़े उत्तर प्रदेश में हैं। यूपी में एक करोड़ (सटीक रूप से 1,16,35,286) से अधिक मामले लंबित हैं। इसके बाद महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल हैं। निचली अदालतों में न्यायाधीशों की सबसे अधिक रिक्तियों के मामले में भी उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है। मंत्रालय ने यह भी खुलासा किया कि यूपी की जिला और अधीनस्थ न्यायपालिका में लगभग 1200 सीटें खाली हैं।
उच्च न्यायालयों में 60 लाख से अधिक मामले लंबित, यहां भी यूपी टॉप पर
केंद्रीय कानून मंत्रालय के अनुसार देश के उच्च न्यायालयों में 60 लाख से अधिक मामले लंबित हैं। इसमें भी उत्तर प्रदेश टॉप पर है। अकेले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लगभग 10 लाख लंबित मामले हैं। इसके बाद बॉम्बे, राजस्थान और मद्रास हाईकोर्ट का स्थान है। सबसे अधिक रिक्तियां भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हैं, जहां 65 सीटों पर न्यायाधीशों की नियुक्ति का इंतजार है। देश के उच्च न्यायालयों में कुल मिलाकर 341 सीटें खाली हैं।
लंबित मामलों के लिए सिर्फ जजों के रिक्त पद जिम्मेदार नहीं
हालांकि देश की अदालतों में जजों की कमी के बावजूद कानून मंत्रालय का मानना है कि लंबित मामलों के लिए केवल रिक्त पद जिम्मेदार नहीं हैं। इस संबंध में जवाब देते हुए केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कहा कि अदालतों में मामलों के लंबित होने में कई कारकों का योगदान हो सकता है। इसमें भौतिक बुनियादी ढांचे और सहायक अदालती कर्मचारियों की उपलब्धता, शामिल तथ्यों की जटिलता, साक्ष्य की प्रकृति, हितधारकों का सहयोग, बार, जांच एजेंसियां, गवाह और वादी और नियमों और प्रक्रियाओं का उचित अनुप्रयोग शामिल है।