संसद भवन के ‘शेर’ नहीं दिखते क्रूर, सुप्रीम कोर्ट ने कहा – यह दिमाग पर निर्भर करता है
नई दिल्ली, 30 सितम्बर। भारत के नए संसद भवन परिसर में लगाई गई शेरों की मूर्ति कानून का उल्लंघन नहीं करती है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से यह टिप्पणी की गई है। साथ ही कोर्ट ने आक्रामक मूर्ति के दावे पर भी सवाल उठाए हैं।
शीर्ष अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह व्यक्ति के दिमाग पर निर्भर करता है। दरअसल, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के हिस्से के तहत संसद भवन पर शेर की मूर्ति स्थापित की गई थी। राजनीतिक दलों की तरफ से भी इसपर सवाल उठाए गए थे।
मामले में दो वकीलों – अलदनीश रेन और रमेश कुमार की तरफ से याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि नई मूर्ति स्टेट एंबलम ऑफ इंडिया (प्रोहिबिशन ऑफ इम्प्रॉपर यूज) एक्ट, 2005 में मंजूरी प्राप्त राष्ट्रीय प्रतीक की डिजाइन के विपरीत है। हालांकि, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया।
एडवोकेट रेन ने कहा था कि राष्ट्रीय प्रतीक की मंजूरी प्राप्त डिजाइन में कोई भी कलाकारी नहीं की जा सकती। साथ ही याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि इसमें ‘सत्यमेव जयते’ का लोगो नहीं है। बहरहाल, कोर्ट ने माना कि इस मूर्ति के निर्माण में कानून का उल्लंघन नहीं किया गया है। साल 1950 में 26 जनवरी को राज्य प्रतीक को नए गठित गणतंत्र के चिह्न और मुहर के रूप में लाया गया था। वहीं, प्रतीक साल 2005 में अस्तित्व में आया।
याचिका में क्या कहा गया?
याचिका में कहा गया है कि प्रतीक में शामिल शेर क्रूर और आक्रामक नजर आ रहे हैं, जिनका मुंह खुला हुआ है और दांत दिख रहे हैं। जबकि, सारनाथ में मूर्ति के शेर शांत नजर आ रहे हैं। आगे कहा गया है कि चारों शेर बुद्ध के विचार दिखाते हैं। याचिका के अनुसार, यह महज एक डिजाइन नहीं है, इसका अपना सांस्कृतिक महत्व है।