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यूनेस्को ने दुर्गा पूजा को दिया विरासत का दर्जा, सीएम ममता बनर्जी ने रैली निकालकर दिया धन्यवाद

यूनेस्को ने दुर्गा पूजा को दिया विरासत का दर्जा, सीएम ममता बनर्जी ने रैली निकालकर दिया धन्यवाद

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कोलकाता, 1 सितम्बर। विविधताओं के रंग से सराबोर भारत में हमें विभिन्न धर्मों के कई त्योहार देखने को मिलते हैं। इस क्रम में बुधवार को सबके घरों में बप्पा ने आगमन किया है तो वहीं बप्पा की विदाई होने के कुछ दिनों बाद आता है नवरात्रि का त्यौहार। पूरे देश, खासतौर पर महाराष्ट्र में जहां गणेशोत्सव की धूम रहती है वहीं नवरात्रि यानी दुर्गा पूजा का यह खास महापर्व पश्चिम बंगाल में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसे में पश्चिम बंगाल के बाशिंदों के लिए खुशखबरी मिली, जब UNESCO ने दुर्गा पूजा को विरासत घोषित कर दिया है।

यह खुशखबरी मिलने के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यूनेस्को को धन्यवाद दिया और उत्तर कोलकाता में एक रैली निकाली। महारैली में ममता बनर्जी ने दुनिया के सभी लोगों को भी धन्यवाद दिया। महारैली में ममता बनर्जी सबसे आगे चल रही थीं। उनके साथ तृणमूल कांग्रेस के कई नेता और बंगाल सरकार के मंत्री भी रहे। सड़क के दोनों ओर लोगों की भारी भीड़ उमड पड़ी थी।

 

रैली के पहले ममता बनर्जी ने ट्वीट किया, ‘दुर्गा पूजा एक ऐसी भावना है, जो हमें संकीर्ण सोच से बाहर निकालती है और एकता के सूत्र में बांधती है। कला को अध्यात्म से जोड़ती है। दुर्गा पूजा को सांस्कृतिक विरासत का दर्जा देने और इसमें सम्मिलित सभी लोगों के श्रम को सम्मान देने के लिए हम यूनेस्को का धन्यवाद करते हैं।’

ममता बेवजह श्रेय लेने की कोशिश कर रहीं : सुकांत मजुमदार

दिलचस्प तो यह है कि यूनेस्को द्वारा दुर्गापूजा को हेरिटेज का दर्जा देने का श्रेय लेने में ममता बनर्जी जहां पूरी ताकत लगा रही हैं वहीं इसकी असली हकदार प्रेसिडेंसी कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर व शोधार्थी तपती गुहा ठाकुरता हैं। इस क्रम में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजुमदार ने आरोप लगाते हुए कहा कि ममता बनर्जी बेवजह इसका श्रेय ले रही हैं।

सुकांत ने कहा कि तपती गुहा ठाकुरता वर्ष 2003 से दुर्गा पूजा पर शोध कर रहीं थीं। उन्होंने व्यक्तिगत प्रयास से यूनेस्को से मान्यता दिलाने के लिए संपर्क किया। मान्यता लेने के लिए उन्होंने यूनेस्को का फॉर्म भरने के साथ 20 चुनिंदा तस्वीरें व एक वीडियो मेल किया था। कलकत्ता सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंस के निदेशक की हैसियत से उन्होंने ऐसा किया था। उनके इस प्रयास को केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने मंजूरी दी थी, तभी उनका फार्म स्वीकार्य हुआ था।

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