मुंबई, 6 फरवरी। बीते वर्ष 28 सितंबर की बात है, जब अपनी जादुई आवाज के जरिए श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाली स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने अपना 92वां जन्मदिन मनाया था। पीएम नरेंद्र मोदी और बॉलीवुड सहित विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने लता दीदी को जन्मदिन की बधाई दी थी। फिलहाल रविवार की सुबह वह मनहूस घड़ी आई, जब क्रूर काल ने स्वर साम्राज्ञी को छीन लिया और सारा देश शोकमग्न हो उठा।
28 सितम्बर, 1929 को इंदौर के एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मीं लता मंगेशकर का मूल नाम नाम हेमा हरिदकर था। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर मराठी रंगमंच से जुड़े हुए थे। पांच वर्ष की उम्र में लता ने अपने पिता के साथ नाटकों में अभिनय करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही लता संगीत की शिक्षा अपने पिता से लेने लगीं। लता ने वर्ष 1942 में फिल्म किटी हसाल के लिए अपना पहला गाना गाया, लेकिन उनके पिता को लता का फिल्मों के लिये गाना पसंद नहीं आया और उन्होंने उस फिल्म से लता के गाए गीत को हटवा दिया।
पिता की मृत्यु के बाद पूरा परिवार पुणे से मुंबई आ गया
वर्ष 1942 में 13 वर्ष की छोटी उम्र में ही लता के सिर से पिता का साया उठ गया और परिवार की जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गईं। इसके बाद उनका पूरा परिवार पुणे से मुंबई आ गया। लता को फिल्मों में अभिनय करना जरा भी पसंद नहीं था बावजूद इसके परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी को उठाते हुए उन्होंने फिल्मो में अभिनय करना शुरू कर दिया।
1942 में लता को ‘पहली मंगलगौर’ में अभिनय करने का मौका मिला
वर्ष 1942 में लता को ‘पहली मंगलगौर’ में अभिनय करने का मौका मिला। वर्ष 1945 में लता की मुलाकात संगीतकार गुलाम हैदर से हुई। गुलाम हैदर लता के गाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए। गुलाम हैदर ने फिल्म निर्माता एस. मुखर्जी से यह गुजारिश की कि वह लता को अपनी फिल्म शहीद में गाने का मौका दें।
लेकिन एस. मुखर्जी को लता की आवाज पसंद नहीं आई और उन्होंने लता को अपनी फिल्म में लेने से मना कर दिया। इस बात को लेकर गुलाम हैदर काफी नाराज हुए और उन्होंने कहा कि यह लड़की आगे इतना अधिक नाम करेगी कि बड़े-बड़े निर्माता-निर्देशक उसे अपनी फिल्मों में गाने के लिए गुजारिश करेंगे।
1949 में ‘आएगा आने वाला’ गीत से बॉलीवुड में पहचान बनाने में सफल हुईं
वर्ष 1949 में फिल्म महल का गाना ‘आएगा आने वाला’ गाने के बाद लता बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गईं। इसके बाद राजकपूर की बरसात के गाने ‘जिया बेकरार है’, ‘हवा मे उड़ता जाये’ जैसे गीत गाने के बाद लता बालीवुड में एक सफल पार्श्वगायिका के रूप में स्थापित हो गईं।
‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत सुनकर पं. नेहरू की आंखें नम हो उठी थीं
सी. रामचंद्र के संगीत निर्देशन में लता ने प्रदीप के लिखे गीत पर एक कार्यक्रम के दौरान एक गैर फिल्मी गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाया। इस गीत को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू इतने प्रभावित हुए कि उनकी आंखों मे आंसू आ गए। लता के गाए इस गीत से आज भी लोगों की आंखे नम हो उठती हैं।
लता की आवाज से नौशाद का संगीत सज उठता था
संगीतकार नौशाद लता के आवाज के इस कदर दीवाने थे कि वह अपनी हर फिल्म में लता का गाना ही चाहते थे ।वर्ष 1960 मे प्रदर्शित फिल्म ‘मुगले आजम’ के गीत ‘मोहे पनघट पे’ गीत की रिकॉर्डिंग के दौरान नौशाद ने लता से कहा था मैंने यह गीत केवल तुम्हारे लिए ही बनाया है, इस गीत को कोई और नहीं गा सकता।
हिन्दी सिनेमा के ‘शो मैन‘ राज कपूर ने सरस्वती का दर्जा तक दे रखा था
हिन्दी सिनेमा के ‘शो मैन’ कहे जाने वाले राज कपूर को सदा अपनी फिल्मों के लिए लता की आवाज की जरूरत रहा करती थी। लता की आवाज से राज कपूर इस कदर प्रभावित थे कि उन्होंने लता मंगेश्कर को सरस्वती का दर्जा तक दे रखा था। साठ के दशक में लता पार्श्वगायिकाओं की महारानी कही जाने लगी।
‘इंतकाम‘ में पहली बार आशा भोंसले की तरह पाश्चात्य धुन पर भी गाना गाया
वर्ष 1969 मे लक्ष्मीकांत प्यारे लाल के संगीत निर्देशन ने लता मंगेश्कर ने फिल्म ‘इंतकाम’ का गाना ‘आ जानें जा’ गाकर यह साबित कर दिया कि वह बहन आशा भोंसले की तरह पाश्चात्य धुन पर भी गा सकती है। 90 के दशक तक आते-आते लता कुछ चुनिंदा फिल्मो के लिए ही गाने लगीं। वर्ष 1990 में अपने बैनर की फिल्म लेकिन के लिये लता ने यारा सिली सिली ..गाना गाया । हालांकि यह फिल्म चली नहीं, लेकिन आज भी यह गाना लता के बेहतरीन गानों में से एक माना जाता है।
सिने करिअर में चार बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया
लता को उनके सिने करिअर में चार बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। लता अपने गीतों के लिए वर्ष 1972 में फिल्म ‘परिचय’, वर्ष 1975 में ‘कोरा कागज’ और वर्ष 1990 में ‘लेकिन’ के लिए नेशनल अवार्ड से सम्मानित की गईं। इसके अलावे लता मंगेश्कर को वर्ष 1969 में पदमभूषण, वर्ष 1989 में दादा साहब फाल्के सम्मान, वर्ष 1999 में पदमविभूषण, वर्ष 2001 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया गया।