नई दिल्ली, 3 सितम्बर। भयंकर हिंसा और खौफ के बीच 20 वर्षों बाद अफगानिस्तान में एक बार फिर औपचारिक रूप से इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन तालिबान का राज शुरू होने जा रहा है। हालांकि तालिबानी सरकार के औचरारिक गठन के कुछ घंटे पूर्व तालिबान ने इस बयान से भारत की चिंता और चुनौती बढ़ा दी है कि चीन उसका (तालिबान) का सबसे बड़ा साथी है और आर्थिक तंगी से जूझ रहे इस मुल्क को फिर खड़ा करने की ड्रैगन में क्षमता है।
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद प्रवक्ता ने एक वेब पोर्टल से बातचीत में कहा, ‘चीन हमारा सबसे महत्वपूर्ण साथी रहा है। यह हमारे लिए भी एक सुनहरा मौका होने जा रहा है। चीन हमारे देश में निवेश कर फिर इसे खड़ा कर देगा।’ ऐसे में माना जा रहा है कि तालिबान की नई सरकार बर्बादी की कगार पर खड़े अफगानिस्तान को फिर खड़ा करने की जिम्मेदारी चीन को सौंप सकता है।
चीन से मदद की आस लगाए बैठा है तालिबान
तालिबानी प्रवक्ता के बयान के पीछे तर्क यह दिया गया है कि अफगानिस्तान के पास बड़ी तादाद में कॉपर माइन हैं। ऐसे में चीन यदि उन्हें फिर सक्रिय कर दे और समय के लिहाज से मॉर्डन बना दे तो यह देश के लिए काफी फायदेमंद रहेगा।
देखा जाए तो आने वाले दिनों में चीन और तालिबान की एक ऐसी साझेदारी दिखने वाली है, जिससे भारत की मुसीबत और ज्यादा बढ़ जाएगी। दरअसल, एक तरफ तालिबान, चीन से मदद की आस लगाए बैठा है तो वही दूसरी तरफ वह चीन के हर उस प्रोजेक्ट का समर्थन कर रहा है, जिसका भारत खुलकर विरोध करता है।
भारत के विपरीत तालिबान ने ‘वन बेल्ट वन रोड परियोजना’ को बताया बेहतरीन
इसका सबसे बड़ा उदाहरण है वन बेल्ट वन रोड परियोजना, जिसका भारत ने शुरुआत से विरोध किया है। लेकिन अब तालिबान ने उस प्रोजेक्ट को बेहतरीन बता दिया है। उसने बयान में कहा है कि चीन का यह प्रोजेक्ट अफ्रीका, एशिया और यूरोप को पोर्ट, रेल और सड़क मार्ग से जोड़ने वाला है। ऐसे में तालिबान इसे अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिहाज से अच्छा मान रहा है।
चीन को उम्मीद – तालिबानी सरकार में आतंकियों को पनपने का मौका नहीं मिलेगा
चीन की तरफ से भी तालिबान के समर्थन में बयान दे दिए गए हैं। सरकार बनने के पहले ही चीन ने सारी तैयारी कर रखी है। हालांकि चीन ने उम्मीद जाहिर की है कि तालिबान एक ऐसी सरकार देगा, जहां पर आतंकियों को पनपने का मौका नहीं मिलेगा और सिर्फ अर्थव्यवस्था को सुधारने पर जोर दिया जाएगा। साथ ही सभी से अच्छे रिश्ते बनाने पर फोकस रहेगा।
चीनी विदेश मंत्री ने भी कह दिया है कि वह अफगानिस्तान के निजी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने वाले हैं। वह सिर्फ अफगान लोगों के साथ अपनी दोस्ती निभाएंगे। फिलवक्त अफगानिस्तान की जैसी स्थिति है, उसे देखते हुए तालिबान को चीन पर जरूरत से ज्यादा निर्भर होना पड़ेगा। ऐसे में अफगानिस्तान में चीन की दखलअंदाजी और ज्यादा बढ़ जाएगी और वह भविष्य में भारत के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर सकता है।