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योगी सरकार की तैयारी : नैमिषारण्य को मिलेगा वैदिक शहर का स्वरूप, धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा

योगी सरकार की तैयारी : नैमिषारण्य को मिलेगा वैदिक शहर का स्वरूप, धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा

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लखनऊ, 17 अप्रैल। उत्तर प्रदेश सरकार अब नैमिषारण्य (जनपद सीतापुर) को अयोध्या की तर्ज पर विकसित कर एक भव्य वैदिक नगरी में बदलने तैयारी में है। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि यह धार्मिक स्थल न केवल श्रद्धालुओं के लिए और अधिक सुविधाजनक बने, बल्कि अपनी प्राचीनता को भी संरक्षित रखे।

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2023 में गांधी जयंती से एक दिन पहले नैमिषारण्य पहुंचकर संतों से मुलाकात की थी और उन्हें आश्वासन दिया था कि विकास कार्यों के लिए संसाधन की कोई कमी नहीं होगी।

नैमिषारण्य तीर्थ परिषद योजनाबद्ध तरीके से करेगी क्षेत्र का विकास

राज्य सरकार ने इस निमित्त नैमिषारण्य तीर्थ परिषद का गठन किया है, जो योजनाबद्ध तरीके से क्षेत्र के धार्मिक, सांस्कृतिक और बुनियादी ढांचे का विकास करेगी। राजघाट और दशाश्वमेध घाट के बीच एक नया घाट बनाया जाएगा और पुराने घाटों का सौंदर्यीकरण तथा पुनर्निर्माण किया जा रहा है। कुछ घाटों का कार्य पूरा हो चुका है, जबकि अन्य पर कार्य जारी है। साथ ही, क्षेत्र की सड़कों को चौड़ा किया जा रहा है और ललिता देवी, भूतेश्वरनाथ तथा अन्य प्राचीन मंदिरों को भी विकास योजना में शामिल किया गया है।

राज्य सरकार यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मूलभूत सुविधाएं जैसे स्वच्छता, प्रकाश व्यवस्था और सुरक्षा के इंतजाम भी करेगी। मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि संतों की भावनाओं का सम्मान किया जाएगा और आधुनिक विकास कार्यों के साथ-साथ क्षेत्र की ऐतिहासिकता को भी सुरक्षित रखा जाएगा।

नैमिषारण्य व प्रमुख धार्मिक स्थलों के बीच हेलीकॉप्टर सेवा जल्द

नैमिषारण्य को अन्य प्रमुख धार्मिक स्थलों से जोड़ने के लिए एक हेलीकॉप्टर सेवा भी जल्द शुरू की जाएगी, जिससे यह स्थल लखनऊ, अयोध्या और वाराणसी से सीधे जुड़ जाएगा। इसके लिए ठाकुरनगर रुद्रवर्त धाम मार्ग पर नौ करोड़ रुपये की लागत से एक हेलीपोर्ट बनाया गया है, जहां एक साथ तीन हेलीकॉप्टर उतर सकते हैं। औपचारिकताएं पूरी होने के बाद सेवाएं शुरू कर दी जाएंगी। इसके अलावा, रेल और सड़क संपर्क को भी और बेहतर बनाया जाएगा।

नैमिषारण्य को 88 हजार ऋषियों की तपोभूमि माना जाता है

गौरतलब है कि नैमिषारण्य गोमती नदी के किनारे बसा है और इसे 88 हजार ऋषियों की तपोभूमि माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि महापुराणों की रचना यहीं हुई थी, और पहली बार सत्यनारायण कथा यहीं सुनाई गई थी। भगवान राम ने भी यहीं अश्वमेध यज्ञ किया था। यह स्थान महर्षि वाल्मीकि, लव-कुश, युधिष्ठिर और अर्जुन से भी जुड़ा हुआ है। चार धाम यात्रा में नैमिषारण्य का दर्शन आवश्यक माना जाता है।

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