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भारत के उदय के साथ उसकी बौद्धिक और सांस्कृतिक गंभीरता का भी विकास आवश्यक : उप राष्ट्रपति धनखड़

भारत के उदय के साथ उसकी बौद्धिक और सांस्कृतिक गंभीरता का भी विकास आवश्यक : उप राष्ट्रपति धनखड़

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नई दिल्ली, 10 जुलाई। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को कहा कि एक वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के उदय के साथ-साथ उसकी बौद्धिक और सांस्कृतिक गंभीरता का भी विकास होना आवश्यक है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके बिना कोई भी उन्नति स्थायी नहीं है और इसके बिना हमारी परंपराओं के अनुरूप नहीं है। किसी राष्ट्र की शक्ति उसके विचारों की मौलिकता, उसके मूल्यों की शाश्वतता और उसकी बौद्धिक परंपराओं की दृढ़ता में निहित होती है। यही वह सौम्य शक्ति है जो स्थायी होती है और जिस विश्व में हम रहते हैं, उसमें सौम्य शक्ति अत्यंत प्रभावशाली है।

राष्ट्रीय राजधानी में भारतीय ज्ञान प्रणालियों (आईकेएस) पर वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए जगदीप धनखड़ ने कहा, ‘यूरोप के विश्वविद्यालयों के अस्तित्व में आने से बहुत पहले ही, भारत के विश्वविद्यालय शिक्षा के समृद्ध केंद्रों के रूप में स्थापित हो चुके थे। हमारी प्राचीन भूमि बौद्धिक जीवन के प्रखर केंद्रों—तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी और ओदंतपुरी—का घर थी। ये ज्ञान के विशाल गढ़ थे। इनके पुस्तकालय ज्ञान के विशाल सागर थे, जिनमें हज़ारों पांडुलिपियां समाहित थीं।’

इस्लामी आक्रमण ने भारतीय विद्या परंपरा की गौरवशाली यात्रा में अंतराल पैदा किया

भारत की बौद्धिक यात्रा में ऐतिहासिक विखंडनों पर विचार करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा, ‘भारत पर इस्लामी आक्रमण ने भारतीय विद्या परंपरा की गौरवशाली यात्रा में पहला अंतराल पैदा किया। आत्मसात करने के बजाय, तिरस्कार और विनाश का भाव था। ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने दूसरा अंतराल पैदा किया, जब भारतीय ज्ञान प्रणाली को अवरुद्ध और विकृत किया गया। शिक्षा केंद्रों ने अपने उद्देश्य बदल दिए। दिशासूचक यंत्र को नियंत्रित किया गया। ध्रुव तारा बदल गया। ऋषियों और विद्वानों से लेकर, इसने क्लर्क और राजपुरुषों को जन्म देना शुरू कर दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी के बाबूओं की ज़रूरतों ने राष्ट्र की विचारकों की आवश्यकताओं को बदल दिया।’

उन्होंने कहा, ‘हमने सोचना, चिंतन करना, लिखना और दार्शनिकता करना बंद कर दिया। हम रटने और उसे आत्मसात लगे। दुर्भाग्य से, आलोचनात्मक सोच की जगह ग्रेड ने ले ली। महान भारतीय विद्या परंपरा और उससे जुड़ी संस्थाओं को व्यवस्थित रूप से नष्ट, और तबाह कर दिया गया।’

उप राष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि एक वास्तविक भारतीय ज्ञान प्रणाली अनुसंधान पारिस्थितिकी प्रणाली को लिखित शब्द और जीवित अनुभव दोनों का सम्मान करना चाहिए – यह स्वीकार करते हुए कि अंतर्दृष्टि संदर्भ से उतनी ही उभरती है जितनी कि पाठ से।

भारतीय ज्ञान प्रणालियों की मजबूती के लिए केंद्रित काररवाई का आह्वान

वहीं, भारतीय ज्ञान प्रणालियों को मजबूत करने के लिए केंद्रित काररवाई का आह्वान करते हुए उप राष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, ‘आइए, हम अपना ध्यान ठोस काररवाई पर केंद्रित करें क्योंकि यही समय की मांग है। शास्त्रीय भारतीय ग्रंथों के डिजिटल संग्रह का निर्माण एक अत्यावश्यक प्राथमिकता है, जिसमें संस्कृत, तमिल, पाली और प्राकृत जैसी सभी शास्त्रीय भाषाएं शामिल हों।’

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